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1st Bihar Published by: RAJ Updated Tue, 15 Sep 2020 02:44:00 PM IST
NALANDA : मलमास के महीने में राजगीर में आयोजित होने वाले मेले की तैयारियों को पूरा करने के लिए प्रशासन की तरफ से युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया गया है. इस मेले का आयोजन 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक किया जाना था. लेकिन अब बस परम्पराओं का निर्वहन किया जाएगा.
राज्य सरकार ने इस साल कोरोना महामारी के कारण मलमास मेला का आयोजन नहीं करने का निर्णय लिया है, बावजूद इसके राजगीर-तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा कमेटी द्वारा ध्वजारोहण कार्यक्रम की परंपरागत औपचारिकता को पूरी करने की तैयारी की जा रही है. वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ ध्वजारोहण कर 33 करोड़देवी-देवताओं के आवाहन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वहन इस वर्ष भी 18 सितंबर को शुभ मुहूर्त में पूरे विधि विधान के साथ किया जाएगा.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश अनुसार 100 से अधिक लोग पूजा पाठ में शामिल नहीं हो सकते हैं, इसलिए चुनिंदा लोगों को ही आमंत्रित किया गया है. ध्वजारोहण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मुख्या रूप से बेगूसराय सिमरिया घाट के पीठाधीश्वर स्वामी चिदात्मन जी महाराज उर्फ फलाहारी बाबा और अयोध्या गोलाघाट के पीठाधीश्वर स्वामी सिया किशोरी शरण दास जी को आमंत्रित किया गया है.
पंडा कमिटी के सेक्रेटरी ने बताया कि प्रत्येक तीन साल पर मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र राजगीर में मलमास मेला का राजकीय आयोजन किया जाता रहा है. आदि अनादि काल से लगने वाले इस मलमास मेला में शामिल होने के लिए देश और दुनिया के लाखों – करोड़ों श्रद्धालु राजगीर आते रहे हैं. यहां के गर्म जल के कुंडों, झरनों और नदियों में स्नान करते हैं. लेकिन इस बार वैश्विक महामारी के कारण श्रद्धालुओं और तीर्थ यात्रियों की अपार भीड़ जुटना लाजमी है, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन होना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है. इन्हीं कारणों से बिहार सरकार ने इस वर्ष मलमास मेला के राजकीय आयोजन पर रोक लगा दी है.
सरकार के निर्णय के बाद डीएम योगेन्द्र सिंह द्वारा मलमास मेला के दौरान होने वाले सभी कार्यक्रमों को रद्द करने का आदेश पहले ही जारी कर दिया गया है. परन्तु मलमास मेला (पुरुषोत्तम मास) के पहले दिन वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ ध्वजारोहण करने की अनुमति प्रदान की गई है. मलमास मेला के दौरान यहां के मंदिरों में सदियों से चली आ रही पूजा पाठ करने की परंपरा में छूट दी गई है. इसके साथ ही भीड़ न लगाने की हिदायत भी दी गई है. कुंड स्नान करने पर भी प्रतिबंध है.