PATNA: प्रसिद्ध लोकगायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा ने व्यथित होकर बड़ा सवाल पूछा है. उन्होंने पूछा है कि बिहार में ये अंधेर कब तक. शारदा सिन्हा कह रही हैं- क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में.
सहेली की मौत के बाद छलका दर्द
दरअसल शारदा सिन्हा अपनी प्रिय सहेली की मौत के बाद बेहद व्यथित हैं. उनकी सहेली डॉ इशा सिन्हा बीमार थीं, पैसे के अभाव में उनकी तड़प तडप कर मौत हो गयी. इला सिन्हा मिथिला विश्वविद्यालय से पीजी हेड के पद से रिटायर हुई थीं. लेकिन सरकार उन्हें पेंशन नहीं दे रही थी. पिछले चार-पांच महीने से उन्हें पेंशन नहीं मिला था. बीमार इशा सिन्हा के पति सरकार से पेंशन देने की गुहार लगाते रह गये लेकिन पैसा नहीं मिला. आखिरकार डॉ इशा सिन्हा दम तोड़ गयीं.
पढिये क्या कहा शारदा सिन्हा ने
शारदा सिन्हा ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है. उन्होंने फेसबुक पर लिखा है
“ये अंधेर कब तक ?????”
डॉ इशा सिन्हा मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं. ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में पीजी हेड से रिटायर की थीं . जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं. आज वो हमें अकेला छोड़ गईं, 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं.
पैसे के अभाव में हो गयी मौत
शारदा सिन्हा ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है- अंतिम समय में डॉ इशा सिन्हा के दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी. डॉ इशा सिन्हा के पति सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को अपनी पत्नी की हालत के बारे में भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी. सच्चिदानंद जी पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना- इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में. ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें.
शारदा सिन्हा को भी नहीं मिल रही पेंशन
शारदा सिन्हा ने लिखा है-मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही. उन्होंने लिखा है-साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं. पेंशन नहीं मिलने का फर्क फर्क हर सेवानिवृत को गहरा ही पड़ता है. क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का. क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में.