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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 30 Jul 2025 02:34:45 PM IST
भारत में - फ़ोटो GOOGLE
Child Malnutrition India: भारत में बच्चों के बीच बौनेपन की समस्या गंभीर रूप ले रही है, खासकर कुछ राज्यों और जिलों में जहां यह दर चिंताजनक स्तर पर है। जून 2025 के पोषण ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में 68.12% बच्चे बौनेपन का शिकार हैं, जो देश में सबसे अधिक है। इसके अलावा झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम (66.27%), उत्तर प्रदेश के चित्रकूट (59.48%), मध्य प्रदेश के शिवपुरी (58.20%) और असम के बोंगाईगांव (54.76%) जैसे जिले भी बौनेपन के मामले में अत्यंत प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 34 जिलों में बौनेपन की दर 50% से अधिक पाई गई है, जो इसे देश में सबसे खराब स्थिति वाला राज्य बनाता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोषण ट्रैकर के अनुसार, आंगनवाड़ियों में 0-6 वर्ष के लगभग 8.19 करोड़ बच्चों में से 35.91% बच्चे बौनेपन से प्रभावित हैं, जबकि 16.5% बच्चे कम वजन के हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की दर और भी अधिक, लगभग 37.07% दर्ज की गई है। महाराष्ट्र के नंदुरबार में कम वजन बच्चों का अनुपात भी सबसे अधिक है, जहां 48.26% बच्चे कम वजन के पाए गए। इसके बाद मध्य प्रदेश के धार, खरगोन, बड़वानी, गुजरात के डांग, डूंगरपुर और छत्तीसगढ़ के सुकमा जैसे जिलों में भी कम वजन के मामलों की संख्या काफी अधिक है।
बच्चों में बौनेपन का मुख्य कारण दीर्घकालिक या बार-बार होने वाला कुपोषण है, जो उनकी शारीरिक और मानसिक विकास को गहरा प्रभावित करता है। हालांकि पिछले 19 वर्षों में भारत में बौनेपन की औसत दर 42.4% से घटकर 29.4% हुई है, फिर भी कुछ जिलों में यह समस्या अभी भी गंभीर बनी हुई है। यह दर्शाता है कि पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बावजूद, कई क्षेत्रों में बच्चे अभी भी पर्याप्त पोषण और देखभाल से वंचित हैं।
सरकार द्वारा पोषण ट्रैकर जैसे उपकरणों के माध्यम से लगातार डेटा एकत्रित कर समस्या की पहचान और समाधान के प्रयास जारी हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस दिशा में कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाए हैं ताकि बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार हो सके। इसके बावजूद, इस समस्या से निपटने के लिए जनजागरूकता, सही पोषण, और समय पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो बच्चों के शारीरिक विकास पर इसका दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो देश के समग्र विकास के लिए भी खतरा बन सकता है।