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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 06 Oct 2025 12:40:41 PM IST
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Bihar Politics : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक बयानबाज़ी और नेताओं की मांगों ने चुनावी माहौल को और गरम कर दिया है। इस बीच बीजेपी के कोटे के गन्ना उद्योग मंत्री कृष्णानंद पासवान ने चुनाव आयोग से एक विवादित और अजीबोगरीब डिमांड कर दी है। उन्होंने कहा कि चुनाव में जिस तरह से बुर्का पहनने वाली महिलाओं को मतदान के दौरान विशेष रियायत दी जाती है, उसी तरह घूंघट पहनने वाली महिलाओं को भी समान रियायत मिलनी चाहिए।
कृष्णानंद पासवान के इस बयान ने चुनावी सियासत में नई बहस को जन्म दिया है। उनका तर्क है कि अगर बुर्का वाली महिलाओं को छूट दी जा सकती है, तो घूंघट वाले महिलाओं को भी अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस मामले में कोई समानता नहीं बनाई गई, तो चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठ सकते हैं। उनके अनुसार, मतदान का अधिकार तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब चुनाव आयोग पूरी तरह से इस मुद्दे पर विचार करे और समान रियायत दोनों पक्षों को दी जाए।
इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारे और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग इसे जरूरी समानता का सवाल मान रहे हैं, जबकि कईयों का कहना है कि यह मुद्दा संवेदनशील और सांस्कृतिक दृष्टि से विवादास्पद हो सकता है। बीजेपी के इस मंत्री का कहना है कि यह केवल न्याय और समानता का मामला है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग को चाहिए कि वह यह तय करे कि किस प्रकार की महिलाओं को मतदान के दौरान विशेष अनुमति मिलनी चाहिए और किस प्रकार की महिलाओं को नहीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव के समय ऐसे बयान अक्सर सियासत में गरमाहट लाने और अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए दिए जाते हैं। इस मामले में बुर्का और घूंघट को लेकर विवाद राजनीतिक दलों के बीच नीतिगत बहस को भी जन्म दे सकता है। यह मुद्दा धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता से जुड़ा होने के कारण इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
गन्ना उद्योग मंत्री का यह बयान इस चुनाव में महिलाओं के मताधिकार और उनकी पहचान को लेकर भी बहस को बढ़ा सकता है। उनका यह तर्क है कि यदि एक समूह को विशेष छूट मिल सकती है, तो किसी अन्य समूह को उससे अलग करना उचित नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की है कि इस मुद्दे पर तुरंत निर्णय लिया जाए ताकि चुनावी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की असमानता न रह जाए।
राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि इस बयान के बाद चुनावी मैदान में बुर्का और घूंघट को लेकर सियासी बहस तेज होगी और सभी राजनीतिक दल इसका उपयोग अपने लाभ के लिए करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में, चुनाव आयोग के सामने भी एक संवेदनशील चुनौती खड़ी हो गई है। यह देखना रोचक होगा कि आयोग इस मामले में क्या निर्णय लेता है और चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं के अधिकार और धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को कैसे संतुलित करता है।