1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 03 Oct 2025 09:43:55 AM IST
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Bihar Politics : बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा अब कुछ ही दिनों में होने की संभावना है। दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने एंटी-इंकंबेंसी (वर्तमान विधायकों और मंत्रियों के प्रति जनता में नाराजगी) से निपटना है। कई ऐसे विधायक और मंत्री हैं, जिन्हें लेकर जनता में लंबे समय से असंतोष है। यही वजह है कि भाजपा इस बार बिहार में गुजरात मॉडल लागू करने की योजना पर गंभीरता से विचार कर रही है। ऐसे में पार्टी ने पाटिल को प्रधान और मोर्य के साथ बिहार भेजा है।
जानकारी हो कि,केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल के सलाह पर मोदी और शाह की जोड़ी ने गुजरात में हालिया चुनावों में अपने 108 मौजूदा विधायकों में से 45 का टिकट काट दिया था और कई वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों को मैदान से बाहर रखा। ऐसे में अब जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार भाजपा यही रणनीति बिहार में भी अपनाई जा सकती है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, बिहार में करीब 30 ऐसे मौजूदा विधायक हैं, जिनके टिकट काटने पर विचार चल रहा है। इसका मकसद नए और लोकप्रिय चेहरों को मौका देना है और एंटी-इंकंबेंसी की चुनौती को साधना है।
गौर करने वाली बात यह है कि,भाजपा के लिए यह कोई आसान फैसला नहीं है। इसमें कई सीटों पर स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ मजबूत है, लेकिन यह भी देखने को मिलो रहा है कि मौजूदा विधायकों के प्रति मतदाताओं में नाराजगी बढ़ रही है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना है कि सरकार की नीतियों और योजनाओं के कारण जनता सीधे तौर पर पार्टी नेतृत्व से नाराज नहीं है, लेकिन स्थानीय विधायक और उनके कामकाज को लेकर असंतोष है। यही वजह है कि पार्टी ने उम्मीदवारों की अंतिम सूची बनाने से पहले व्यापक विचार-विमर्श शुरू कर दिया है।
ऐसे में सूत्र बतलाते हैं कि भाजपा के बड़े नेता अमित शाह लगातार बिहार में काम रही टीम के साथ बैठक कर रणनीति पर विचार कर रहे हैं। उम्मीदवारों के चयन से जुड़े फार्मूले पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि पार्टी की लोकप्रियता बढ़े और एंटी-इंकंबेंसी को नियंत्रित किया जा सके। गुजरात के अनुभव से सीख लेते हुए भाजपा बिहार में भी टिकट वितरण में बड़े बदलाव की योजना बना रही है।
भाजपा के अलग -अलग संगठन के जुड़ें लागों का भी यह मानना है कि यह कदम पार्टी को चुनाव में मजबूती देने के साथ-साथ स्थानीय विधायक विरोध की लहर को कम कर सकता है। गुजरात मॉडल में पुराने और लंबे समय से सत्ता में बने नेताओं को मैदान से बाहर करने के साथ ही नई और युवा शक्ति को सामने लाना शामिल है। बिहार में भी पार्टी इसी रणनीति के तहत करीब 30 मौजूदा विधायकों के स्थान पर नए चेहरों को मौका देने पर विचार कर रही है।
वहीं,भाजपा के वर्तमान आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में पार्टी के पास अभी 80 विधायक हैं, जिनमें 22 मंत्री शामिल हैं। कई सीटों पर यह देखा गया है कि जनता स्थानीय विधायक के खिलाफ असंतोष व्यक्त कर रही है। ऐसे में यदि पार्टी ने समय रहते टिकट वितरण में बदलाव किया, तो इसका सकारात्मक असर पड़ सकता है। लेकिन अगर बदलाव सही तरीके से नहीं किया गया, तो यह पार्टी के लिए जोखिम भी बन सकता है।
मालूम हो कि, पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक रहा था। उस समय भी पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को सफलतापूर्वक जीत दिलाई थी। एनडीए की सरकार बिहार में लगातार पांचवीं बार सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है। लेकिन इस बार परिस्थितियाँ थोड़ी अलग हैं। बिहार में कई जिलों में जनता का मूड बदल गया है और स्थानीय स्तर पर एंटी-इंकंबेंसी की लहर तेज हुई है। ऐसे में टिकट में बदलाव के साथ ही सही उम्मीदवारों का चयन बेहद अहम है।
भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार, बिहार में गुजरात मॉडल अपनाने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि पार्टी नई ऊर्जा और नई उम्मीदों के साथ मैदान में उतरेगी। इससे पार्टी को न केवल एंटी-इंकंबेंसी की चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि जनता में नए नेताओं को लेकर उत्साह भी बढ़ेगा। पार्टी के लिए यह रणनीति कठिन तो है, लेकिन इसे सही तरीके से लागू किया गया तो परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं।
गुजरात मॉडल में भाजपा ने यह सुनिश्चित किया था कि वरिष्ठ और लंबे समय से सत्ता में बने नेताओं को टिकट न देकर नए और लोकप्रिय उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए। बिहार में भी इसी तर्ज पर करीब 30 मौजूदा विधायकों का टिकट काटने की योजना बनाई जा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह बदलाव केवल टिकट वितरण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि संभावित रूप से उम्मीदवारों के प्रचार-प्रसार और रणनीति में भी नए तरीके अपनाए जाएंगे।
भाजपा का मुख्य उद्देश्य बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अधिक से अधिक सीटें जीतना है। इसके लिए पार्टी ने राष्ट्रीय नेतृत्व के स्तर पर रणनीति तय कर ली है और स्थानीय स्तर पर भी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ लगातार विचार-मंथन जारी है। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि टिकट में बदलाव से विरोधी दलों के लिए चुनौती बढ़ सकती है, क्योंकि नए उम्मीदवारों के नाम के साथ जनता का उत्साह भी जुड़ा रहेगा।
जबकि,वर्तमान में बिहार की राजनीति में सीटों का समीकरण बदल रहा है। गठबंधन की रणनीतियाँ अंतिम रूप ले रही हैं और सभी दल अपने उम्मीदवारों को लेकर तैयारियाँ कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा की यह रणनीति महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यदि पार्टी समय रहते सही बदलाव करती है, तो न केवल एंटी-इंकंबेंसी को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि नए और लोकप्रिय उम्मीदवारों के माध्यम से पार्टी का जनाधार भी मजबूत किया जा सकता है।
भाजपा की यह योजना इस बात का संकेत देती है कि चुनाव जीतने के लिए पार्टी पुराने तरीकों से हटकर, नई रणनीति और नए चेहरे के साथ मैदान में उतरेगी। गुजरात मॉडल बिहार के लिए सिर्फ एक चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि पार्टी के लिए सत्ता में वापसी की कुंजी भी साबित हो सकती है।
बहरहाल, इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में क्या परिणाम होंगे, यह देखने की बात है। लेकिन एक बात तय है कि भाजपा का यह रणनीतिक कदम एंटी-इंकंबेंसी से निपटने और चुनावी जीत सुनिश्चित करने के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।