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08-Oct-2025 10:24 AM
By First Bihar
Bihar election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, लेकिन एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन पा रही है। जैसे ही चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा की, सभी दलों ने उम्मीदवारों की सूची तैयार करने की प्रक्रिया तेज कर दी, मगर एनडीए में सीटों के बंटवारे पर अब भी सहमति नहीं बन सकी है। इसकी एक बड़ी वजह चिराग पासवान के साथ समझौता नहीं होना बताया जा रहा है।
दरअसल, बिहार की 243 विधानसभा सीटों में भाजपा, जेडीयू, हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा), आरएलएसपी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए के प्रमुख घटक दल हैं। सूत्रों के अनुसार, भाजपा और जेडीयू मिलकर करीब 205 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं, जबकि शेष 38 सीटें छोटे सहयोगियों के लिए छोड़ी जानी हैं। भाजपा और जेडीयू का फॉर्मूला है कि भाजपा को 102 और जेडीयू को 103 सीटें दी जाएं। शेष सीटों में से चिराग पासवान की पार्टी को 25, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को 6 और जीतन राम मांझी की हम को 7 सीटें देने का प्रस्ताव रखा गया है।
हालांकि, चिराग पासवान इस फॉर्मूले से संतुष्ट नहीं हैं। वे न केवल सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे हैं बल्कि कुछ खास इलाकों में अपनी दावेदारी भी जताना चाहते हैं, जहां उनका जनाधार पारंपरिक रूप से मजबूत रहा है। चिराग पासवान चाहते हैं कि उनकी पार्टी को कम से कम 30 सीटें दी जाएं। उनका तर्क है कि समस्तीपुर, खगड़िया, जमुई और औरंगाबाद जैसे जिलों में उनकी पार्टी की जड़ें गहरी हैं। इसके अलावा वे गोविंदगंज सीट पर राजू तिवारी को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, लेकिन यह सीट वर्तमान में भाजपा के हिस्से में है, जिसे लेकर तनातनी बढ़ गई है।
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के अंदर इस बात को लेकर दुविधा है कि अगर चिराग की सीटें बढ़ाई जाती हैं तो जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की सीटें घटानी पड़ेंगी, जिससे दोनों नेता नाराज हो सकते हैं। भाजपा चाहती है कि छोटे दलों को सीमित सीटें देकर उन्हें राज्यसभा, विधान परिषद या मंत्री पद के जरिए साधा जाए। उपेंद्र कुशवाहा पहले ही राज्यसभा भेजे जा चुके हैं, इसलिए अब यह विकल्प जीतन राम मांझी या चिराग पासवान के लिए खुला है।
चिराग पासवान की रणनीति इस बार बिल्कुल स्पष्ट है वह एनडीए में अपनी पार्टी की राजनीतिक प्रासंगिकता और ताकत दोनों को बढ़ाना चाहते हैं। बीते कुछ सालों में उन्होंने अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को नई दिशा देने की कोशिश की है। वे खुद को युवा नेतृत्व के रूप में पेश कर रहे हैं और चाहते हैं कि एलजेपी (रामविलास) को बिहार की राजनीति में “निर्णायक सहयोगी” के रूप में देखा जाए। यही कारण है कि वे सीटों पर समझौता करने के मूड में नहीं हैं।
सूत्रों के अनुसार, बीते शाम दिल्ली में चिराग पासवान और भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच एक अहम बैठक हुई है। इस बैठक में सीट बंटवारे के अंतिम फॉर्मूले पर चर्चा हुई। भाजपा नेता विनोद तावड़े, मंगल पांडे और चिराग पासवान के बीच बंद कमरे में करीब 40 मिनट तक चली अहम बैठक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। इस मुलाकात में चिराग पासवान को मनाने की पूरी कोशिश की गई, लेकिन वे अपने 30 सीटों के प्रस्ताव से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा चिराग पासवान को 25 सीटों की पेशकश कर चुकी है, जबकि वे 30 सीटों की मांग पर अड़े हैं। पार्टी के भीतर यह चिंता जताई जा रही है कि अगर चिराग को इतनी सीटें दी गईं, तो भाजपा के कई वर्तमान विधायक कट सकते हैं, जिससे संगठन के अंदर असंतोष बढ़ सकता है। यही वजह है कि भाजपा फिलहाल उनकी मांग को पूरी तरह स्वीकार करने के पक्ष में नहीं दिख रही।
बैठक में विनोद तावड़े और मंगल पांडे ने चिराग को समझाने की कोशिश की कि गठबंधन के संतुलन को बनाए रखना जरूरी है और हर दल को उसकी राजनीतिक ताकत के अनुसार सीटें मिलनी चाहिए। लेकिन चिराग पासवान ने साफ कहा कि उनकी पार्टी का जनाधार कई जिलों में मजबूत है, और उन्हें कम सीटें देकर उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर नहीं की जा सकती।
सूत्रों के मुताबिक, अगर चिराग पासवान को बिहार में मनाना मुश्किल साबित होता है, तो उन्हें केंद्र से “मलाईदार सीट” या किसी अन्य अहम जिम्मेदारी देकर साधा जा सकता है। इस दिशा में पार्टी के रणनीतिकार विचार कर रहे हैं कि उन्हें केंद्र की राजनीति में स्थान देकर एनडीए के भीतर समरसता बनाए रखी जाए। ऐसा माना जा रहा है कि अब चिराग को मनाने की कोशिश सीधे केंद्रीय नेता करेंगे।
इधर, बिहार प्रभारी से मुलाकात के बाद चिराग पासवान बिहार लौटते ही बयान दिया है कि “अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है, ऐसे में इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं होगा।” इस बयान से यह संकेत मिल रहा है कि बातचीत अभी अधर में है और कोई अंतिम सहमति नहीं बनी है। चिराग की यह टिप्पणी यह भी दर्शाती है कि अब मामला सीधे शीर्ष स्तर तक पहुंच चुका है।
राजनीतिक हलकों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद हस्तक्षेप करना पड़ सकता है, ताकि एनडीए के भीतर सीट बंटवारे का गतिरोध खत्म हो सके। बिहार में एनडीए के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है, और चिराग पासवान जैसे युवा नेता का असंतोष चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। बहरहाल, दिल्ली में हुई यह बैठक भले ही बेनतीजा रही हो, लेकिन इसने यह साफ कर दिया है कि बिहार एनडीए में सीटों का फॉर्मूला अभी तय नहीं हुआ है। अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या अमित शाह या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद चिराग पासवान मान जाएंगे या फिर बिहार एनडीए में दरार की आशंका और बढ़ जाएगी।