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12-Aug-2025 07:19 AM
By First Bihar
Reservation Policy: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने की सहमति दे दी है, जिसमें केंद्र सरकार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत और प्रभावी बनाने के लिए नई नीतियां तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई है। यह याचिका रमाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद द्वारा अधिवक्ता संदीप सिंह के माध्यम से दाखिल की गई है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर 10 अक्टूबर, 2025 तक जवाब देने को कहा है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को आगाह किया कि यह याचिका देशभर में व्यापक बहस को जन्म दे सकती है और उन्हें “भारी विरोध” का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इसके दूरगामी सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं।
याचिका में तर्क दिया गया है कि वर्तमान आरक्षण नीति के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भीतर आर्थिक रूप से सक्षम लोग आरक्षण का सबसे अधिक लाभ उठा रहे हैं, जबकि उन्हीं समुदायों के गरीब और वंचित तबके अक्सर पीछे छूट जाते हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 और 16 को सुदृढ़ करने के लिए यह आवश्यक है कि आरक्षण वितरण में आर्थिक प्राथमिकता को भी शामिल किया जाए, ताकि “वास्तव में जरूरतमंदों” को अवसर मिल सके।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “आरक्षण से लाभ पाने वाले कई लोग अब आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हो चुके हैं। ऐसे में यह विचार किया जाना जरूरी है कि क्या उन्हें अपने ही समुदाय के गरीब सदस्यों की कीमत पर बार-बार आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि यह समय है कि आरक्षण के भीतर “समानता” की अवधारणा को फिर से परिभाषित किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की एक सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस बी.आर. गवई ने की थी, ने 1 अगस्त 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में राज्यों को अनुसूचित जाति वर्गों के भीतर जातियों का उप-वर्गीकरण (sub-categorization) करने की अनुमति दी थी। इस निर्णय में यह भी कहा गया था कि सरकारें ‘क्रीमी लेयर’ यानी आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग को आरक्षण लाभ से बाहर रखने के लिए स्पष्ट मानदंड बनाएं, ताकि आरक्षण का असली लाभ सबसे पिछड़े वर्गों तक पहुँच सके।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस याचिका पर विचार करने की सहमति देने के बाद देश में आरक्षण नीति को लेकर एक नई बहस शुरू हो सकती है। राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और समुदायों के बीच इसके समर्थन और विरोध की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट अब केंद्र सरकार के जवाब का इंतजार कर रहा है, जिसके बाद मामले की विस्तृत सुनवाई होगी। यदि कोर्ट इस दिशा में किसी नीति या मानदंड के निर्धारण का निर्देश देता है, तो यह भारत की आरक्षण व्यवस्था में एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है। यह मामला न केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसर के सिद्धांतों को भी पुनर्परिभाषित करने की दिशा में एक कदम हो सकता है।