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05-Oct-2025 09:53 AM
By First Bihar
Bihar politics: भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और चर्चित चेहरा पवन सिंह एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने जा रहे हैं। करीब 16 महीने के अंतराल के बाद उनकी राजनीतिक घरवापसी तय मानी जा रही है। हाल ही में दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनकी मुलाकात के बाद से ही अटकलें तेज थीं, जो अब सच साबित होने जा रही हैं।
राजनीतिक हलकों में पवन सिंह की यह वापसी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भाजपा की रणनीति का बड़ा हिस्सा मानी जा रही है। पार्टी इस कदम के जरिए शाहाबाद क्षेत्र में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश में है, जहां राजपूत, कुशवाहा और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। खबरों के मुताबिक, भाजपा आरा या काराकाट विधानसभा सीट से पवन सिंह को मैदान में उतार सकती है। भोजपुर जिले के रहने वाले पवन सिंह का इस इलाके में गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव है।
भोजपुरी फिल्मों के सुपरहिट अभिनेता-संगीतकार पवन सिंह की लोकप्रियता सिर्फ पर्दे तक सीमित नहीं है। उनके प्रशंसक भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिलों तक फैले हुए हैं, जिन्हें मिलाकर शाहाबाद क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में कुल 22 विधानसभा सीटें हैं, और यहां जातीय आधार पर राजनीति का पलड़ा अक्सर बदलता रहा है। राजपूत मतदाता यहां करीब 15 से 17 फीसदी, कुशवाहा लगभग 12 फीसदी, जबकि यादव मतदाता लगभग 20 फीसदी हैं। भाजपा को उम्मीद है कि पवन सिंह का चेहरा राजपूतों को एकजुट करने के साथ-साथ युवा और भोजपुरी भाषी मतदाताओं को भी आकर्षित करेगा।
पवन सिंह पहली बार 2017 में भाजपा में शामिल हुए थे। वे पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य भी रहे। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी लाइन से अलग राह चुनी और काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर गए। चुनाव में उन्होंने 2.74 लाख वोट हासिल किए और भाजपा समर्थित एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा से करीब 21 हजार वोट ज्यादा पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इस बगावती कदम के बाद 22 मई 2024 को भाजपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
अब एक साल बाद उनकी घरवापसी पर खुद पवन सिंह का कहना है — “मैं कभी भाजपा से दूर नहीं गया था, बस परिस्थितियां अलग थीं।” उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि वे भाजपा की विचारधारा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भरोसा रखते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के इस कदम के पीछे सिर्फ लोकप्रियता नहीं, बल्कि रणनीतिक गणित भी है। शाहाबाद क्षेत्र में भाजपा को इस समय एक मजबूत राजपूत चेहरा की जरूरत थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह के भाजपा नेतृत्व से रिश्ते हाल के दिनों में ठंडे पड़े हैं, और उनके तेवर भी तल्ख बताए जा रहे हैं। ऐसे में पार्टी के लिए पवन सिंह एक विकल्प के रूप में उभरकर सामने आए हैं, जो राजपूत वोटों को साधने में मददगार साबित हो सकते हैं।
इसके अलावा, भाजपा पवन सिंह की भोजपुरी स्टार पावर को भी सियासी मंच पर इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। पवन सिंह के गीतों और संवादों की लोकप्रियता गांव-गांव तक फैली है, जो पार्टी के प्रचार अभियानों को एक अलग पहचान दे सकती है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, उन्हें चुनाव प्रचार में भोजपुरी ब्रांड एंबेसडर जैसी भूमिका दी जा सकती है, जिससे युवाओं में भाजपा की अपील बढ़ेगी।
राजनीति में वापसी के साथ पवन सिंह एक बार फिर बिहार की सियासत के केंद्र में हैं। भाजपा को उम्मीद है कि उनका करिश्मा शाहाबाद की 22 सीटों के अलावा पूरे राज्य में असर डालेगा। वहीं विपक्षी दल इसे भाजपा की “ग्लैमर पॉलिटिक्स” बता रहे हैं, लेकिन भाजपा मानती है कि यह “जनप्रियता और जनसंपर्क का सही संगम” है।
बहरहाल ,आने वाले हफ्तों में पवन सिंह की औपचारिक सदस्यता ग्रहण समारोह और उनके संभावित निर्वाचन क्षेत्र को लेकर पार्टी की अंतिम घोषणा होने की संभावना है। फिलहाल, यह तय है कि पवन सिंह की भाजपा में वापसी से बिहार की सियासी तापमान में एक नई गर्माहट जरूर आ गई है।