सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक, पढ़िए क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड और कब हुई थी शुरुआत

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक, पढ़िए क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड और कब हुई थी शुरुआत

DESK : सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्‍ड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्‍ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, "काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।"


दरअसल, भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था। आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। इसे देश का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है। 


इलेक्टोरल बॉन्ड को इस्तेमाल करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं। ये आपको एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आपको मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकते हैं, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा सकता है। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का यूज किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं।