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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 19 Jun 2025 02:50:52 PM IST
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Life Style: रूमेटाइड अर्थराइटिस (RA), जो कि एक ऑटोइम्यून और क्रॉनिक बीमारी है, अब दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है और इसकी चपेट में सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी आ रहा है। हालिया शोध के अनुसार, 1990 के बाद से इस बीमारी के मामलों में 13 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है। यह बीमारी अब दुनिया भर में 1.8 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित कर रही है और इसका सबसे बड़ा असर उन देशों पर पड़ा है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं।
रूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून डिसीज है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही ऊतकों पर हमला कर देती है। यह रोग मुख्यतः जोड़ों में सूजन, दर्द, जकड़न और अकड़न का कारण बनता है। लेकिन यह सिर्फ जोड़ों तक सीमित नहीं रहता – यह त्वचा, आंखें, फेफड़े, हृदय और रक्त नलिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है। यह एक दीर्घकालिक बीमारी है और समय के साथ रोगी की गतिशीलता और जीवन गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डाल सकती है।
'जर्नल ऑफ एनल्स ऑफ द रूमेटिक डिजीजेस' में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जनसंख्या वृद्धि ने भारत, पाकिस्तान और स्पेन जैसे देशों में इस बीमारी के बोझ को बढ़ा दिया है, जबकि थाईलैंड, चीन और पोलैंड में उम्र बढ़ने को प्रमुख कारण माना गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2040 तक लो-और-मिडल सोशियोडेमोग्राफिक इंडेक्स (SDI) वाले देशों में, जैसे भारत, बांग्लादेश और नाइजीरिया, इस बीमारी का बोझ काफी तेजी से बढ़ेगा। इन देशों में हेल्थकेयर सुविधाओं की कमी, शिक्षा का निम्न स्तर, और अधिक जनसंख्या वृद्धि एक बड़ा कारण हैं।
वहीं, उच्च SDI वाले देशों में बेहतर उपचार और जागरूकता के चलते इसके मामलों में गिरावट देखी जा सकती है। मायो क्लिनिक के अनुसार, इसके लक्षण व्यक्ति-विशेष के अनुसार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन सामान्य रूप से देखे जाने वाले प्रमुख लक्षण हैं, जैसे जोड़ों में दर्द, सूजन और गर्माहट, सुबह के समय जोड़ों में जकड़न, जो 45 मिनट या उससे अधिक समय तक रह सकती है। थकान, नींद के बाद भी न ठीक होने वाली, हल्का बुखार और भूख न लगना शामिल है। गंभीर मामलों में शरीर के अन्य अंगों पर असर भी डालता है। जैसे आंखों में सूजन, फेफड़ों में दिक्कत आदि।
रिसर्च से पता चलता है कि इस बीमारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लिंग: महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं। जेनेटिक फैक्टर्स यदि परिवार में किसी को यह बीमारी रही हो तो जोखिम बढ़ जाता है। माइक्रोबायोम में असंतुलन, जिससे आंतों के बैक्टीरिया का असंतुलन प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। धूम्रपान, मोटापा, और हार्मोनल बदलाव विशेषकर महिलाओं में है। पर्यावरणीय कारक जैसे प्रदूषण, इंफेक्शन आदि भी ट्रिगर कर सकते हैं।
NHS.UK और अन्य संस्थानों के अनुसार, रूमेटाइड अर्थराइटिस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन यदि शुरुआती चरण में इसका निदान हो जाए तो इसे कंट्रोल और मैनेज किया जा सकता है।
इलाज के प्रमुख उपाय
DMARDs (Disease-Modifying Antirheumatic Drugs) – जैसे मेथोट्रेक्सेट, सल्फासलाज़ीन
बायोलॉजिकल थैरेपी – जैसे TNF इनहिबिटर्स
एनाल्जेसिक्स और स्टेरॉयड्स – दर्द और सूजन को कम करने हेतु,
फिजियोथेरेपी और एक्सरसाइज – जोड़ों की गतिशीलता बनाए रखने के लिए
सर्जरी – जब जोड़ों का अत्यधिक नुकसान हो जाए
संतुलित आहार, जिसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड, एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड्स शामिल हों। साथ ही धूम्रपान और शराब से परहेज, योग और मेडिटेशन करें, जिसस मानसिक तनाव कम हो सके।
रूमेटाइड अर्थराइटिस अब सिर्फ एक "बुजुर्गों की बीमारी" नहीं रही। युवाओं में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और अगर इसे समय पर पहचाना और संभाला न जाए, तो यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है। जागरूकता, समय पर निदान और इलाज इस बीमारी से लड़ने के सबसे बड़े हथियार हैं।