PATNA: बिहार विधान परिषद की 9 सीटों पर हो रहे चुनाव में भूमिहारों का पत्ता साफ कर दिया गया है. भूमिहारों के दो सीटिंग उम्मीदवारों के रिटायर होने के बावजूद बीजेपी ने इस जाति के किसी उम्मीदवार को दुबारा मौका नहीं दिया. वहीं जेडीयू ने भी भूमिहारों को नहीं पूछा. दिलचस्प बात ये भी है कि अब तक हुए चुनावों में बीजेपी और जेडीयू मिलकर सामाजिक समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार तय करते रहे हैं. लेकिन इस दफे दोनों ने कुशवाहा जाति के उम्मीदवार खड़ा कर कुछ अलग ही समीकरण का संकेत दिया है.
बीजेपी ने भूमिहारों का पत्ता साफ किया
दरअसल विधानसभा कोटे से विधान परिषद की जिन नौ सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उनमें पहले बीजेपी तीन सीटों पर काबिज थी. बीजेपी के तीन उम्मीदवार संजय मयूख, कृष्ण कुमार सिंह और राधा मोहन शर्मा विधान पार्षद थे जो इस बार रिटायर हुए थे. बीजेपी ने इसमें दोनों भूमिहारों का पत्ता साफ कर दिया है. विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी को दो सीटें मिलनी हैं. इन दो में से एक के लिए कायस्थ जाति से आने वाले संजय मयूख को तो दुबारा मौका दे दिया गया वहीं कृष्ण कुमार सिंह और राधा मोहन शर्मा को किनारे कर दिया गया है. बीजेपी ने कुशवाहा जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को अपना दूसरा उम्मीदवार बनाया है.
दिलचस्प बात ये है कि राधामोहन शर्मा का कार्यकाल सिर्फ एक साल का रहा. पिछले साल मई में उन्हें विधान परिषद के उप चुनाव में उम्मीदवार बनाया गया था. उनका कार्यकाल सिर्फ एक साल का था लिहाजा उम्मीद थी कि राधामोहन शर्मा को दुबारा विधान परिषद भेजा जायेगा.
जेडीयू से भी भूमिहार साफ
उधर जेडीयू ने भी भूमिहारों का पत्ता साफ कर दिया है. जिन 9 सीटों के लिए उप चुनाव हो रहे हैं उन पर जेडीयू के जिन उम्मीदवारों का कार्यकाल समाप्त हुआ है उसमें जेडीयू के पीके शाही भी शामिल थे. नीतीश कुमार के बेहद खास माने जाने वाले पी के शाही सूबे के सबसे प्रमुख वकीलों में से एक हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें भी मौका नहीं दिया.
जेडीयू के जानकार सूत्र बताते हैं कि पीके शाही का पत्ता साफ करने के लिए ही नीतीश कुमार ने अपने खास मंत्री अशोक चौधरी को भी उम्मीदवार नहीं बनाया. वे ये मैसेज देना चाहते थे कि उन्होंने किसी को रिपीट नहीं किया. लिहाजा पीके शाही का भी पत्ता कटा और अशोक चौधरी का भी.
बीजेपी में किनारे कर दिये गये भूमिहार
सियासी गलियारे में हो रही चर्चाओं के मुताबिक बीजेपी ने भूमिहारों को किनारे करने की कवायद अब तेज हो गयी है. इसके संकेत तब मिले थे जब चुनाव अभियान की शुरूआत के लिए अमित शाह ने डिजिटल रैली की थी. अमित शाह के मंच पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को जगह नहीं मिली थी. जबकि वहां रविशंकर प्रसाद, आर. के. सिंह से लेकर नित्यानंद राय जैसे केंद्रीय मंत्रियों को जगह मिली थी.