PATNA : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति ने यू-टर्न का लिए क्या लिया बिहार में कांग्रेसियों की किस्मत खुल गई। विपक्ष में बैठे कांग्रेसी भी सरकार में आ गए और दो मंत्रियों की कुर्सी कांग्रेस के पाले में चली गई। हालांकि यह अलग बात है कि सत्ता में आने के बावजूद कांग्रेस कोटे के मंत्री संवाद को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। दरअसल सत्ता में आने के भारतीय जनता पार्टी अपने मंत्रियों का दरबार प्रदेश कार्यालय में आयोजित करती रही है। जनता दल यूनाइटेड कोटे के मंत्री भी प्रदेश जदयू कार्यालय में जनता दरबार कार्यक्रम के अंदर मौजूद रहते हैं। संवाद के जरिए यह कोशिश होती है कि लोगों की समस्याएं खत्म की जाए और उनकी शिकायतें सुनी जाए। लेकिन कांग्रेस के अंदर इस तरह की कोई पहल फिलहाल नहीं दिखती है।
मौजूदा सरकार में कांग्रेस से दो मंत्री हैं, पहले मो अफाक आलम और दूसरे मुरारी गौतम। इन दोनों मंत्रियों के पास जो विभाग है उससे जुड़ी शिकायतों को लेकर इनके स्तर पर कोई दरबार नहीं लगाया जाता है। प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में इन मंत्रियों का आना-जाना केवल बैठकों तक ही सीमित है। साल 2015 में जब कांग्रेस सरकार में शामिल हुई थी तो उस वक्त अशोक चौधरी और मदन मोहन झा सदाकत आश्रम में दरबार लगाते थे लेकिन 2017 में जब कांग्रेस विपक्ष के अंदर गई उसके बाद यह सिलसिला रुक गया। इस साल अगस्त महीने में सत्ता में आई कांग्रेस ने फिर कोई पहल नहीं की लेकिन अब प्रदेश नेतृत्व चाहता है की कार्यप्रणाली में बदलाव किया जाए और कांग्रेस के मंत्री भी सदाकत आश्रम में जनता से संवाद करें।
नेतृत्व चाहता है कि मंत्रियों के साथ-साथ विधायक भी जनता से संवाद करें लेकिन बिहार कांग्रेस की नियति ही खराब दिख रही है। पार्टी कई खेमों में बैठी हुई नजर आती है। बिहार में नेतृत्व बदलाव यह कयास तो लंबे अरसे से लगते रहे हैं लेकिन अब तक किसी नए चेहरे पर मुहर नहीं लगी है। कांग्रेस आलाकमान की कुर्सी पर मलिकार्जुन खड़गे के बैठने के बाद बदलाव की उम्मीद है लेकिन चुनाव जीतने के बाद जिस तरह विधायक और बाद में इन्हीं विधायकों में से मंत्री बने नेता जनता से दूर हो रहे हैं वह कांग्रेस के लिए वाकई बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में देखना होगा कि सदाकत आश्रम में जनता दरबार का सिलसिला शुरू भी हो पाता है या नहीं।