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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 04 Mar 2024 11:25:30 AM IST
                    
                    
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DELHI: नोट लेकर सदन में वोट करने या सवाल पूछने वाले सांसदों या विधायकों को कोई छूट नहीं मिलेगी. उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज होगा. वे भी भ्रष्टाचार के मामले के आरोपी होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ये बड़ा फैसला सुनाया. सर्वोच्च न्यायालय ने 26 साल पुराने अपने ही फैसले को पलट दिया. 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सदन के भीतर होने वाला कोई काम विशेषाधिकार के तहत आता है. इसके लिए मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है.
लेकिन, सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने, सवाल पूछने या वोट के लिए नोट लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को पिछला फैसला पलट दिया है. संविधान पीठ ने कहा कि विशेषाधिकार के तहत सांसदों-विधायकों को केस से छूट नहीं दी जा सकती है.
बता दें कि 1993 में केंद्र में जब पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी तो आऱोप लगा था कि सरकार बचाने के लिए सांसदों को पैसे दिये गये. झामुमो के चार सांसदों ने 1993 में विश्वास मत के दौरान पैसे लेकर कांग्रेस ने पीवी नरसिंह राव की सरकार के समर्थन में वोट डाले थे. इसके लिए उन्हें तीन करोड़ रुपये दिए गए थे। आरोप शिबू सोरेन, सूरज मंडल, शैलेंद्र महतो व साइमन मरांडी पर लगा था. निचली अदालत ने इस मामले में घूस लेने और देने वाले को सजा सुनायी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि सांसदों को सदन के अंदर की गतिविधि के लिए विशेषाधिकार है और उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
पुराना फैसला गलत
अब सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने पुराने फैसले को पलट दिया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा राव मामले में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले से सहमत नहीं है. उसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट दी गई थी. 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
सोमवार को चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है. ये मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी. आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस स्वीकार करता है. हमारा मानना है कि संसदीय विशेषाधिकारों से घूस लेने के मामले को बचाया नहीं जा सकता है. अगर कोई सांसद भ्रष्टाचार और घूसखोरी करता है तो यह चीजें भारत के संसदीय लोकतंत्र को बर्बाद कर देंगी. संविधान के आर्टिकल 105/194 के तहत मिले विशेषाधिकार का मकसद सांसद के लिए सदन में भय रहित वातावरण बनाना है. अगर कोई विधायक राज्यसभा इलेक्शन में वोट देने के लिए घूस लेता है, तो उसे भी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट का सामना करना पड़ेगा.
सीता सोरेन फंसी
वैसे सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला हेमंत सोरेन की भाभी और शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन के मामले में आया है. सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव के लिए वोट देने के बदले रिश्वत लेने का आरोप है. सीता सोरेन ने अपने बचाव में तर्क दिया कि उन्हें सदन में 'कुछ भी कहने या वोट देने' के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है. इसलिए उन पर घूसखोरी का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलील को नहीं माना. सीता सोरेन पर मुकदमा चलेगा.