नीतीश सरकार की लापरवाही से घूसखोरी के आरोपी सिपाही को फायदा: हाईकोर्ट ने फिर से नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया

नीतीश सरकार की लापरवाही से घूसखोरी के आरोपी सिपाही को फायदा: हाईकोर्ट ने फिर से नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया

PATNA : घूस लेते रंगे हाथों पकड़े गये एक पुलिस सिपाही को सरकार की लापरवाही का फायदा मिला था. नौकरी से बर्खास्त कर दिये गये सिपाही ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उसे वहां से बडी राहत मिल गयी है. हाईकोर्ट ने उसकी बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया है और सरकार को कहा है कि उसे फिर से नौकरी में बहाल करे. हालांकि हाईकोर्ट ने आरोपी सिपाही के खिलाफ कानूनी तरीके से विभागीय कार्रवाई करने की छूट सरकार को दी है.


कैमुर के सिपाही का है मामला
मामला कैमुर जिले में पदस्थापित रहे सिपाही आनंद कुमार सिंह का है. पटना हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा की बेंच ने आज उसकी याचिका पर फैसला सुनाते हुए उसे फिर से नौकरी में बहाल करने को कहा है. आनंद कुमार सिंह को घूसखोरी के आऱोप में 10 जुलाई 2017 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. 


सिपाही आनंद कुमार सिंह कैमुर के मोहनिया थाने में 2015 में पदस्थापित था. दीपक चौबे नाम के एक आवेदक ने कैमुर एसपी के पास गुहार लगायी थी कि मोहनिया थाने के इंसपेक्टर उनसे घूस मांग रहे हैं. इंस्पेक्टर ने घूस की राशि लेकर सिपाही आनंद कुमार सिंह से मिलने को कहा है. एसपी ने दीपक चौबे की शिकायत के आधार पर टीम बनायी. पुलिस की ही टीम ने सिपाही आनंद कुमार सिंह को 6 अक्टूबर 2015 को एक हजार रूपये घूस लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया. उसे जेल भेज दिया गया. पहले उसे सेवा से निलंबित किया गया और फिर 10 जुलाई 2017 को सेवा. 


विभागीय कार्रवाई में हुई गड़बडी
बर्खास्त सिपाही आनंद कुमार सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उसने कहा कि बर्खास्तगी के दौरान सरकारी नियमों का पालन नहीं किया गया. विभागीय कार्रवाई के लिए प्रेजेंटिंग ऑफिसर की नियुक्ति की जाती है. लेकिन उसके मामले में जांच पदाधिकारी को ही प्रेजेंटिंग ऑफिसर बना दिया गया. जिसने जांच कर खिलाफ में रिपोर्ट दी हो वही फैसला भी करने लगेगा तो न्याय कैसे होगा. सिपाही के वकील ने कोर्ट को बताया कि जांच अधिकारी ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से काम नहीं किया है. 


सरकार को जवाब नहीं सूझा
बर्खास्त सिपाही की दलील पर कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था. लेकिन सरकार के वकील ने कोई जवाब नहीं दिया. सरकार ने कोर्ट में माना कि कोई प्रेजेंटिंग ऑफिसर की तैनाती नहीं हुई थी. इसके बाद कोर्ट ने सिपाही को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया. हालांकि सरकार को ये छूट दी कि वह नियमसम्मत तरीके से फिर से सिपाही के खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर फैसला ले सकती है.