PATNA: नीतीश कुमार की भारी फजीहत कराने के बाद बिहार के नव नियुक्ति शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी ने इस्तीफा दे दिया है. भ्रष्टाचार के गंभीर मामले के आरोपी मेवालाल चौधरी ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री के पास भेजा है. सियासी गलियारे में हो रही चर्चाओं के मुताबिक बीजेपी के दबाव में नीतीश कुमार ने मेवालाल चौधरी से इस्तीफा लिया है.
सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार ने आज दोपहर मेवालाल चौधरी को अपने आवास पर तलब किया था. वहां मंत्री को कहा गया कि वे इस्तीफा सौंप दें. इसके बाद मेवालाल चौधरी ने त्यागपत्र दे दिया.
बीजेपी का दबाव
सियासी जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार ने ये कार्रवाई बीजेपी के दबाव में की है. मेवालाल के खिलाफ दर्ज मामले की जानकारी नीतीश कुमार को पहले से थी. लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया. मेवालाल ने कल भी नीतीश कुमार से मुलाकात की थी. लेकिन उन्हें पद से हटाने पर कोई चर्चा नहीं हुई.
आज मेवालाल चौधरी ने शिक्षा मंत्री के दफ्तर में जाकर पदभार संभाल लिया. पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा कि आरोप लगाने से कुछ नहीं हो जाता. उनके खिलाफ मामला कोर्ट में लंबित है. कोर्ट से फैसला आयेगा तब उन्हें दागी कहा जा सकता है. लेकिन फिलहाल वे दागी नहीं है. मेवालाल चौधरी ने कहा कि जो कोई भी उनके खिलाफ जो आरोप लगा रहे हैं उन पर वे कानूनी कार्रवाई करेंगे. पदभार ग्रहण करते वक्त मेवालाल चौधरी के तेवर बुलंद थे. लेकिन कुछ घंटे बाद ही उन्हें इस्तीफा करना पड़ा.
हम आपको बता दें कि क्राइम, करप्शन और कम्यूनलिज्म से कभी समझौता नहीं करने वाले का एलान करने वाले नीतीश कुमार ने बिहार के सबसे बड़े नौकरी घोटाले के आरोपी को अपना शिक्षा मंत्री बना दिया था. बिहार के नये शिक्षा मंत्री बने मेवालाल चौधरी पर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रहते नौकरी में भारी घोटाला करने का आरोप है. उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है. देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद ने बिहार का राज्यपाल रहते मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच करायी थी और उन पर लगे आरोपों को सच पाया था. ये जांच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुई थी. मेवालाल चौधरी पर सबौर कृषि विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में भी घोटाले का आरोप है.
सबसे बड़ी बात ये है कि मेवालाल चौधरी के इस बड़े घोटाले के खिलाफ सत्तारूढ जेडीयू के नेताओं ने भी आवाज उठायी थी. विधान परिषद में जेडीयू विधान पार्षदों ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ हंगामा ख़ड़ा कर दिया था. वहीं बाद में बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी ने इसे जोर शोर से उठाया था. सुशील कुमार मोदी सबूतों का पुलिंदा लेकर तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोबिंद से मिले थे. इसके बाद जांच हुई और जांच में पाया गया कि मेवालाल चौधरी ने कृषि विश्वविद्यालय का कुलपति रहते बड़ा घोटाला किया. ये घोटाला 161 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में हुआ था.
जेडीयू ने भी पार्टी से कर दिया था निलंबित
हालांकि मेवालाल चौधरी सत्ताशीर्ष के बेहद करीबी थे. लिहाजा उनके खिलाफ कार्रवाई होने में बहुत देर हुई. बाद में 2017 में उनके खिलाफ निगरानी विभाग ने एफआईआर दर्ज की. तब तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला गर्म था. मजबूरन जेडीयू को मेवालाल चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी. 2017 में मेवालाल चौधरी को जेडीयू ने पार्टी से निलंबित कर दिया था.
FIR दर्ज है, रसूख इतना कि चार्जशीट दाखिल नहीं हुई
मेवालाल चौधरी के खिलाफ पहले सबौर थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई थी. सबौर थाने की प्राथमिकी संख्या 35/2017 में मेवालाल चौधरी नौकरी घोटाले के मुख्य अभियुक्त हैं. इसके बाद ये मामला निगरानी को ट्रांसफर कर दिया गया. निगरानी विभाग ने मेवालाल के खिलाफ केस संख्या-4/2017 दर्ज कर रखा है. केस को दर्ज हुए 3 साल से ज्यादा हो गये लेकिन आज तक मेवालाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गयी. कहा जाता है कि मेवालाल चौधरी का रसूख इतना बड़ा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाने में निगरानी विभाग विफल रही.
क्या है सबौर कृषि विश्वविद्यालय का नौकरी घोटाला
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुई 161 सहायक प्राध्यापक सह जूनियर साइंटिस्टों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सामने आया. यूनिवर्सिटी में योग्य अभ्यर्थियों के बजाय अयोग्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर ली गई. इस घोटाले को बिहार का व्यापम घोटाला कहा गया. नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सका कि विवि प्रबंधन ने बगैर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास किए डेढ़ दर्जन अभ्यथियों से अधिक को नौकरी दे दी.
दरअसल, बीएयू में साल2012 में प्राध्यापकों की नियुक्ति की गई थी, जब मेवालाल चौधरी कुलपति थे. बहाली में मेधा और नियमों को ताक पर रखकर नियुक्ति की गई.आरोप लगा कि जिनका एकेडमिक रिकार्ड बेहतर था, उन्हें पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन एवं साक्षात्कार के लिए आवंटित 10-10 अंकों में 0.1 देकर अयोग्य करार दे दिया गया, जबकि जिन अभ्यर्थियों का एकेडमिक रिकार्ड कमजोर था उन्हें 20 में से 18 नंबर तक देकर अवैध रूप से नियुक्त कर लिया गया.
विवि प्रबंधन की इस मनमानी से आहत असफल अभ्यर्थियों ने आरटीआइ के माध्यम से नियुक्ति की मेधा सूची निकाली तो इसका खुलासा हुआ. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई. पीएम मोदी ने मामले को गंभीरता लेते हुए इसकी रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल सह कुलाधिपति रामनाथ कोविंद से मांगी थी. इसके बाद राज्यपाल ने बीएयू के कुलपति को इस मामले का रिपोर्ट जल्द सौंपने का निर्देश दिया था।