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अगले महीने से बिहार के चुनावी मैदान में उतरेंगे कन्हैया कुमार, JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष से वाम दलों को बड़ी उम्मीद

अगले महीने से बिहार के चुनावी मैदान में उतरेंगे कन्हैया कुमार, JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष से वाम दलों को बड़ी उम्मीद

12-Jul-2020 06:29 AM

PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने अगले महीने से जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को मैदान में उतारने की तैयारियां शुरू कर दी है. बिहार में RJD के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने की ख्वाहिश रखने वाली CPI को कन्हैया कुमार से बड़ी उम्मीद है. सबसे बडी उम्मीद तो यही है कि कन्हैया कुमार को मैदान में उतार कर CPI महागठबंधन में ज्यादा सीटें हासिल कर सकती है. लेकिन सबसे बडा सवाल तो ये है कि क्या लालू यादव और उनका कुनबा कन्हैया कुमार को आगे बढ़ने देगा.


CPI ने की कन्हैया को मैदान में उतारने की पुष्टि

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी CPI के प्रदेश सचिव सत्यनारायण सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कन्हैया कुमार विधानसभा चुनाव प्रचार में अहम रोल निभायेंगे. सीपीआई के प्रदेश सचिव ने कहा कि कन्हैया कुमार युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं. बिहार में महागठबंधन को ये हकीकत समझनी होगी. सीपीआई के प्रदेश सचिव ने कहा

“कन्हैया कुमार युवाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और वे बड़ी तादाद में वोटरों को गोलबंद कर सकते हैं. हम मानते हैं कि सिर्फ सीपीआई ही नहीं बल्कि जिस भी पार्टी से हमारा गठबंधन होगा उसे कन्हैया कुमार से बड़ा फायदा होने जा रहा है. कन्हैया कुमार को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी पूरी हो चुकी है. अगस्त में बिहार आ रहे हैं.”

गौरतलब है कि इससे पहले कन्हैया कुमार ने नागरिकता संशोधन कानून CAA के खिलाफ इसी साल फरवरी में पूरे बिहार में यात्रा निकाली थी. कन्हैया कुमार ने सीएए के खिलाफ गांधी मैदान में रैली भी की थी. उसके बाद से वे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से गायब हैं. लेकिन अब उनकी पार्टी ने कन्हैया को आगे कर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. 

सीपीआई की कितनी मदद कर पायेंगे कन्हैया 

अब सवाल ये उठ रहा है कि कन्हैया कुमार अपनी पार्टी सीपीआई की कितनी मदद कर पायेंगे. कन्हैया ने पिछला लोकसभा चुनाव बेगूसराय से लड़ा था, जिसमें उन्हें बीजेपी के गिरिराज सिंह से करारी हार का सामना करना पड़ा था. दो दशक पहले तक बिहार के बड़े इलाके में मजबूत आधार रखने वाली पार्टी सीपीआई फिलहाल खस्ताहाल हो चुकी है. पिछले विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने 81 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन एक भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर पाया. लोकसभा चुनाव में भी सीपीआई का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. पार्टी का संगठन छिन्न-भिन्न हो चुका है. क्या कन्हैया अकेले अपने दम पर उसे खडा कर पायेंगे.  

क्या कन्हैया को स्वीकार कर पायेंगे तेजस्वी यादव

ये सवाल इसलिए भी प्रांसगिक है क्योंकि सीपीआई बिहार में राजद-कांग्रेस के महागठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही है. कुछ दिन पहले ही सीपीआई नेताओं ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से महागठबंधन में शामिल होने की बात की थी. सीपीआई के प्रदेश सचिव सत्यानारायण सिंह के मुताबिक उनकी पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनने को उत्सुक है लेकिन हम सम्मानजनक सीट चाहते हैं. सीपीआई सूत्रों के मुताबिक शक्ति सिंह गोहिल से बातचीत के दौरान पार्टी ने महागठबंधन में 40 सीटों की मांग रखी. 

लेकिन सबसे बडा सवाल ये है कि क्या तेजस्वी यादव और लालू फैमिली कन्हैया कुमार को स्वीकार कर पायेगा. ये जगजाहिर है कि लालू यादव और उनका कुनबा कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव के लिए खतरा मानता है. तभी लोकसभा चुनाव में तमाम कोशिशों के बावजूद आरजेडी ने कन्हैया कुमार का समर्थन नहीं किया. बल्कि उस सीट से अपना मजबूत खड़ा कर दिया. तो क्या विधानसभा चुनाव में लालू यादव का कुनबा कन्हैया को स्वीकार कर पायेगा.

जानकारों की मानें तो लालू परिवार किसी सूरत में कन्हैया कुमार के साथ तालमेल को तैयार नही है. ये विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. कन्हैया को आगे कर लालू फैमिली तेजस्वी के लिए नया सिरदर्द तैयार करने को कतई तैयार नहीं होने वाला. हालांकि कांग्रेस सीपीआई से तालमेल की कोशिशों में लगी है. लेकिन आरजेडी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. 

कन्हैया से जादू की उम्मीदें कम

लोकसभा चुनाव का परिणाम बताता है कि कन्हैया कुमार से किसी जादू की उम्मीद नहीं की जा सकती है. बेगूसराय सीट पर देश भर के मोदी विरोधी जमात की कोशिशों के बावजूद कन्हैया कुमार सवा चार लाख वोटों से चुनाव हारे. वे जैसे तैसे अपनी जमानत बचा पाये. खास बात ये भी रही कि कन्हैया कुमार एनडीए विरोधी मतों में ही सेंध लगा पाये. ऐसे में अगर वे बिहार विधानसभा चुनाव में भी मैदान में उतरते हैं तो एनडीए समर्थक वोट में बिखराव की संभावना कम ही नजर आ रही है.