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Bihar News: ‘सिर्फ ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट FIR दर्ज करने के लिए काफी नहीं’, पटना हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

Bihar News: कोर्ट के अनुसार सिर्फ पेशाब और खून की जांच ही पेट में शराब होने का निर्णायक सबूत, पैर लडखड़ाना या मुंह से दुर्गन्ध आना ठोस प्रमाण नहीं माना जाएगा, ना ही बोलने और चलने के तरीके को बना सकते हैं आधार.

Bihar News

28-Feb-2025 03:46 PM

By First Bihar

Bihar News: पटना हाईकोर्ट ने एक पुराने केस में टिप्पणी की है कि अगर शराबबंदी कानून के तहत सिर्फ और सिर्फ ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर कोई केस दर्ज की जाती है तो उसे वैध मन नहीं जायेगा क्योकि वह कोई ठोस प्रमाण नहीं है. हाईकोर्ट ने यह फैसला किशनगंज में पोस्टेड एक सरकारी कर्मचारी की याचिका पर दिया है. इस सरकारी कर्मचारी के घर आबकारी विभाग ने छापा मारा था जहाँ उनका ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट लिया गया, जिसकी रीडिंग 4.1 MG 100 ML थी.


इसी आधार पर उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया था और विभागीय कार्यवाही के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया, तत्पश्चात इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में सुप्रीमकोर्ट के एक बेहद पुराने फैसले का हवाला दिया गया, बता दें कि 1971 के इस फैसले के अनुसार कोई व्यक्ति अगर चलने के दौरान डगमगा रहा हो, उसके मुंह से दुर्गन्ध आ रही हो अथवा उसके बोलने पर यह प्रतीत हो रहा हो कि उसने शराब पी रखी है तो भी यह कोई ठोस प्रमाण नही माना जाएगा, केवल ब्लड और यूरिन टेस्ट ही वास्तविक सबूत माने जाएँगे.


इस विषय पर वकील शिवेश सिन्हा का कहना है कि हमारे केस में ना तो ब्लड टेस्ट और ना ही यूरिन टेस्ट ली गई और महज ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर ही हमारे क्लाइंट पर प्राथमिकी दर्ज कर ली गई थी, जो कि सप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है, इसी आधार पर हमनें हाईकोर्ट के सामने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोहराया जिसके बाद हाईकोर्ट की तरफ से भी स्पष्ट कर दिया गया कि केवल ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर केस दर्ज करना संभव नहीं.


बता दें कि 2016 से बिहार में शराबबंदी लागू है जिसके बाद से अब तक अनगिनत लोग अवैध रूप से शराब पीने के जुर्म में हवालात का चक्कर लगा चुके हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है, हजारों केस केवल साँसों की जांच के बाद ही दर्ज करवाए गए, उनमें ना तो खून की जांच हुई और ना ही पेशाब की मगर चूँकि इस बारे में आम आदमी को ज्यादा जानकारी नहीं तो इनमें से कोई सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देकर बचने में कामयाब नहीं हो सका.