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Mahaveer mandir: कैसे बना पटना का नैवेद्यम लड्डू हर श्रद्धालु की पहली पसंद?

Mahaveer mandir : पटना के महावीर मंदिर में भगवान हनुमान को अर्पित किया जाने वाला प्रसिद्ध नैवेद्यम लड्डू वर्ष 1993 से प्रसाद स्वरूप में वितरित किया जा रहा है। यह लड्डू अब भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो चुका है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 06 Apr 2025 02:30:01 PM IST

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प्रतीकात्मक तस्वीर - फ़ोटो Google

Mahaveer mandir : बिहार का प्रसिद्ध महावीर मंदिर में बनने वाला 'नैवेद्यम लड्डू' आज सिर्फ एक प्रसाद नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बन चुका है। यह लड्डू न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि इसके पीछे छिपी सेवा भावना और सामाजिक योगदान की कहानी भी उतनी ही अद्भुत है।


पटना के महावीर मंदिर में भगवान हनुमान को अर्पित किया जाने वाला प्रसिद्ध नैवेद्यम लड्डू वर्ष 1993 से प्रसाद स्वरूप में वितरित किया जा रहा है। यह लड्डू अब भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो चुका है। इसकी प्रेरणा तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू से ली गई है। आपको बता दे कि नैवेद्यम का निर्माण मुख्यतः दक्ष‍िण भारतीय राज्यों से आए कारीगरों द्वारा किया जाता है, जो साल भर अपने पारंपरिक वस्त्रों में रहकर इस कार्य को कुशलता से तैयार करते हैं। महावीर मंदिर प्रशासन द्वारा इन दक्ष कारीगरों को विशेष रूप से तिरुपति से बुलाया जाता है ताकि शुद्धता और पारंपरिक स्वाद बना रहे।


हर दिन तड़के 2 बजे, मंदिर परिसर में करीब 64 से अधिक कारीगर देसी घी, बेसन, काजू और केसर जैसी शुद्ध सामग्रियों के साथ नैवेद्यम तैयार करते हैं। मंदिर प्रशासन के अनुसार, प्रति माह लगभग 1.20 लाख किलो से भी अधिक नैवेद्यम की बिक्री होती है, जिससे करोड़ों का सालाना राजस्व प्राप्त होता है। अब नैवेद्यम लड्डू को घर बैठे मंगवाने की सुविधा भी उपलब्ध है। भक्त देश के किसी भी कोने से इसे ऑनलाइन ऑर्डर करके प्राप्त कर सकते हैं।


लेकिन इस राजस्व का उपयोग सिर्फ मंदिर तक सीमित नहीं रहता।

महावीर मंदिर ट्रस्ट इन पैसों का उपयोग गरीबों के इलाज, कैंसर अस्पताल, हृदय रोग संस्थान, और शिक्षा संबंधी परियोजनाओं में करता है। इस प्रकार, नैवेद्यम एक प्रसाद से आगे बढ़कर जनसेवा का माध्यम बन चुका है। आज जबकि देशभर में प्रसाद के नाम पर मिलावटी मिठाइयाँ बिक रही हैं, नैवेद्यम अपनी शुद्धता, स्वाद और उद्देश्य की वजह से अनूठा उदाहरण पेश करता है। श्रद्धालु इसे न सिर्फ मंदिर में प्रसाद रूप में पाते हैं, बल्कि इसे उपहार के रूप में दूर-दराज़ तक लेकर जाते हैं, जिससे यह मिठास पूरे देश में फैलती है।