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Swami Avadheshanand: प्रकृति हर पल कुछ नया सृजित करती है। उसका हर क्षण नवीनता से परिपूर्ण होता है। यह सृजनशीलता और परिवर्तनशीलता हमें यह सीखने का अवसर देती है कि जीवन स्थिर नहीं है; बल्कि यह निरंतर विकासशील और नित्य नूतन है। परमात्मा, जो स्वयं शाश्वत और सनातन हैं, हमारे भीतर भी अपनी अंशत: उपस्थिति रखते हैं। इस सत्य को स्वीकारने पर हम अपनी नित्य प्रकृति को पहचान सकते हैं, जिससे जीवन में नयापन और उत्साह स्वाभाविक रूप से आता है।
परिवर्तन और आत्मिक स्थायित्व
हमारा शरीर, हमारे आसपास के दृश्य और यहां तक कि हमारे स्वभाव में भी समय के साथ बदलाव होता है। लेकिन इन सबके बीच हमारी आत्मिक सत्ता, हमारा मूल स्वरूप सदा स्थिर और अपरिवर्तनीय रहता है। यह आत्मिक सत्य हमें बताता है कि हमारे जीवन की जड़ें गहरी और स्थायी हैं। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो हम अपनी समस्याओं और दुविधाओं को अधिक स्पष्टता और आत्मविश्वास के साथ हल कर सकते हैं।
उत्साह और नयापन का महत्व
उत्साह जीवन में ऊर्जा का स्रोत है। जब हम अपनी नित्य प्रकृति को पहचानते हैं, तो हमारा दृष्टिकोण अधिक सकारात्मक और आशावादी हो जाता है। नयापन केवल बाहरी बदलावों में नहीं, बल्कि हमारे दृष्टिकोण और विचारों में भी झलकता है। उत्साह हमें यह सिखाता है कि जीवन में आने वाली हर परिस्थिति एक नया अनुभव और सीखने का अवसर है। यह समझ उदासी और निराशा को दूर करने में मदद करती है।
दुविधाओं को कैसे दूर करें?
जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के अनुसार, हमारी दुविधाएं तब दूर होती हैं, जब हम अपने भीतर की स्थिरता और नित्यता का अनुभव करते हैं। यह अनुभव हमें यह विश्वास दिलाता है कि हमारी समस्याएं और चुनौतियां भी अस्थायी हैं। जब हम आत्मिक स्तर पर स्थिर और जागरूक रहते हैं, तो हम जीवन की जटिलताओं को हल करने के लिए आवश्यक स्पष्टता और धैर्य पा सकते हैं।
आत्मिक नित्यता का अनुभव कैसे करें?
ध्यान और आत्मचिंतन: ध्यान और आत्मचिंतन के माध्यम से हम अपने भीतर की स्थिरता का अनुभव कर सकते हैं। यह अभ्यास हमारे मन को शांत करता है और हमें हमारे सच्चे स्वरूप से जोड़ता है।
प्रकृति से जुड़ाव: प्रकृति के साथ समय बिताना हमें उसकी नित्यता और सृजनशीलता का अनुभव कराता है। यह हमें सिखाता है कि हर अंत एक नए आरंभ का संकेत है।
आभार प्रकट करें: जीवन के हर छोटे-बड़े अनुभव के प्रति आभार प्रकट करने से हम अपने दृष्टिकोण में सकारात्मकता और नवीनता को बनाए रख सकते हैं।
सेवा और परोपकार: दूसरों की मदद करना हमें आत्मिक शांति और संतोष का अनुभव कराता है। यह हमारी आत्मा को अधिक स्थिर और संतुलित बनाता है।
प्रकृति और परमात्मा की नित्यता का अनुभव करना हमें जीवन की सच्ची सुंदरता को समझने में मदद करता है। जब हम अपनी आत्मिक स्थिरता को पहचान लेते हैं, तो हमारे जीवन में उत्साह और नयापन बना रहता है। यह अनुभव हमें हर परिस्थिति में सकारात्मक रहने और दुविधाओं को दूर करने का साहस और मार्गदर्शन प्रदान करता है। अत: जीवन में नित्यता और नवीनता को अपनाएं और आत्मिक संतुलन बनाए रखें। यही हमारे जीवन को सार्थक और सफल बनाएगा।