PATNA : बिहार के लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों को भी वेतन नहीं मिलने से उनपर आफत टूट पड़ा है। वेतन के अभाव में परिवार को खाने को लाले पड़ गये हैं। शिक्षक अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और हड़ताल पर हैं इसलिए सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं है। हड़ताल के दौरान कई शिक्षकों की मौत की खबर सामने आ रही है। लेकिन इस लॉकडाउन में शिक्षकों पर आफत यहीं नहीं खत्म हो जाती। हम शिक्षक की बदहाली को बयां करने जा रहे हैं वो बेचारा नियोजित शिक्षक तो नहीं लेकिन कहानी बिल्कुल मिलती जुलती है।
भागलपुर के भीखनपुर के रहने वाले प्रदीप कुमार राय होम ट्यूशन पढ़ाकर कर अपने तीन बच्चों का परिवार चला रहे हैं। पत्नी की मौत के बाद प्रदीप बच्चों के लिए मां-बाप दोनों की ही भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन में हालात ये हो गये कि सब ट्यूशन छूट गया। हालत ये हो गयी कि पास में जो थोड़े पैसे थे वो खत्म हो गये । अब परिवार के सामने भूखमरी के हालात पैदा हो गये ।बच्चों की हालत नहीं देखी गयी तो प्रदीप उन्हें लेकर रिलीफ कैंप पहुंच गये। वहां मौजूद अधिकारी को अपने बदहाली की दास्तां सुनायी ।
कैंप में मौजूद जगदीशपुर सीओ ने सबसे पहले उन सभी को भोजन करवाया फिर मदद के तौर पर पांच सौ रूपये की सरकारी सहायता भी दी। अधिकारी ने उन्हें सुबह-शाम शिविर में आकर खा लेने और बच्चों का खाना ले जाने को भी कहा। शिक्षक प्रदीप कुमार राय की इस बदहाली के बीच रिलीफ कैंप जैसे अन्नदाता बन कर सामने आया। लेकिन प्रदीप जैसी कहानी न जानें इन दिनों कितने गली-कूचों में गढ़ी जा रही होगी जहां शायद उनकी सुध लेने वाला भी कोई न होगा।