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1st Bihar Published by: 9 Updated Tue, 13 Aug 2019 10:43:44 AM IST
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PATNA : लोकसभा चुनाव में हार के बाद बिहार की सियासत से आउट हो चुके शरद यादव अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की नजर में मतलबी बनते देख रहे हैं। जनता दल यूनाइटेड से अलग होने के बाद शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था। शरद के नेतृत्व में जेडीयू के कई पुराने नेता और कार्यकर्ता लोकतांत्रिक जनता दल से जुड़े थे लेकिन अब उन्हीं नेताओं और कार्यकर्ताओं की हालत त्रिशंकु जैसी बन गई है। दरअसल लोकसभा चुनाव के पहले शरद यादव ने महागठबंधन में जब सीटों की दावेदारी ठोंकी तो लालू यादव ने शरद के सामने यह शर्त रखी की उन्हें आरजेडी के सिंबल पर ही चुनाव लड़ना होगा। लालू की शर्त मानने को मजबूर शरद ने मधेपुरा लोकसभा सीट से आरजेडी के सिंबल पर चुनाव लड़ा। लोकतांत्रिक जनता दल के दूसरे नेता अर्जुन राय सीतामढ़ी लोकसभा सीट से आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन आरजेडी के बाकी उम्मीदवारों की तरह शरद यादव और अर्जुन राय को भी हार का मुंह देखना पड़ा। लालू और शरद के बीच तय हुआ था कि लोकसभा चुनाव के बाद लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय हो जाएगा। दिलचस्प बात यह रही कि शरद यादव या अर्जुन राय ने सार्वजनिक मंच से आरजेडी की सदस्यता लिए बगैर उसके सिंबल पर चुनाव लड़ा। लेकिन अब शरद यादव के इस कदम ने उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मुश्किल में डाल दिया है। लोकसभा चुनाव परिणाम आने के ढाई महीने बाद भी शरद की पार्टी का आरजेडी में विलय नहीं हो सका है। लोकतांत्रिक जनता दल के अंदरूनी सूत्र बता रहे हैं कि शरद की बात लालू यादव से विलय के मुद्दे पर नहीं हो पा रही। लालू यादव अपने पारिवारिक झगड़े को लेकर पहले ही परेशान हैं लिहाजा विलय के सवाल पर लालू कोई बात नहीं कर रहे। शरद के साथ एलजेडी में आए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ऐसे एकलौते नेता हैं जिन्होंने खुले तौर पर आरजेडी की सदस्यता ली है बाकी नेताओं को अभी भी पार्टी के विलय होने का इंतजार है। लोकतांत्रिक जनता दल की राष्ट्रीय कमेटी में 50 से ज्यादा सदस्य हैं राज्य कार्यकारिणी में डेढ़ सौ से ज्यादा नेताओं की लंबी फौज लेकिन इन सभी को शरद के मतलबी कदम ने निष्क्रिय बना दिया है शरद की पार्टी के नेताओं की बेचैनी इसलिए भी बढ़ी हुई है क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल में सदस्यता अभियान के बाद संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में अगर एलजेडी का आरजेडी में विलय नहीं हुआ तो संगठन में शरद के करीबी नेताओं को जगह मिलना नामुमकिन होगा।