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शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली: कोर्ट के सवालों का जवाब देने के लिए बिहार सरकार ने मांगा समय

1st Bihar Published by: Updated Tue, 08 Mar 2022 05:27:23 PM IST

शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली: कोर्ट के सवालों का जवाब देने के लिए बिहार सरकार ने मांगा समय

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DELHI: बिहार में शराबबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई टल गयी है. मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से शराबबंदी को लेकर तीखे सवाल पूछे थे. नीतीश सरकार को 8 मार्च तक उन सवालों का जवाब देना था जिस पर कोर्ट सुनवाई करती. लेकिन बिहार सरकार ने जवाब देने के लिए और समय मांगा है. जिसके बाद आज होने वाली मामले की सुनवाई को टाल दिया गया है.


सुप्रीम कोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार सरकार ने कोर्ट से आग्रह किया है कि उसे जवाब देने के लिए 3 हफ्ते का और समय दिया जाये. इसके बाद कोर्ट ने मामले पर सुनवाई को 3 हफ्ते के लिए टाल दिया है. इस बीच बिहार सरकार कोर्ट के समक्ष अपना लिखित जवाब दाखिल कर देगी. 


गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तीखे सवाल उठाये थे. सुप्रीम कोर्ट शराबबंदी के कारण बिहार में बेतहाशा मुकदमों से नाराज है. पिछले महीने कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि उसने ये कानून लागू करने से पहले क्या यह देखा था कि इतने मुकदमों का बोझ झेलने के लिए अदालती ढांचा तैयार है या नहीं. अगर सरकार ने इस तरह का कोई अध्ययन किया था तो शराबबंदी के मामलों की सुनवाई के लिए कोर्ट और जजों की संख्या बढ़ाने को लेकर कौन से कदम उठाये गये. 


गौरतलब है कि बिहार के शराबबंदी कानून को लेकर सुधीर कुमार यादव उर्फ सुधीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिहार में शराबबंदी के मामले बड़ी तादाद में उनके पास भी आ रहे हैं. 


बिहार की निचली अदालतों में शराबबंदी से जुड़े मुकदमों की काफी बड़ी संख्या है. हालत तो ये है कि पटना हाई कोर्ट के 16 जजों को इस कानून से जुड़े जमानत के मामले सुनने पड़े हैं. कोर्ट अगर आरोपियों को ज़मानत देने से मना करती है तो इससे जेलों में भी भीड़ बढ़ेगी. मौजूदा परिस्थितियों में ये जानना जरूरी हो जाता है कि शराबबंदी कानून लागू करते समय क्या बिहार सरकार ने कोई अध्ययन किया था. क्या सरकार ने ये देखा था कि मौजूदा न्यायिक ढांचा इसके लिए तैयार है या नहीं.