RJD को मिल गया NDA के खिलाफ बड़ा हथियार, बिहार चुनाव के लिए ब्लूप्रिंट तैयार

RJD को मिल गया NDA के खिलाफ बड़ा हथियार, बिहार चुनाव के लिए ब्लूप्रिंट तैयार

PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनता दल को NDA के खिलाफ बड़ा हथियार मिल गया है. बीजेपी और जेडीयू ने विरोधियों को पटखनी देने के लिए आरजेडी के लालू-राबड़ी शासनकाल को एजेंडा बनाया था. लेकिन अब तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी ने जो ब्लू प्रिंट तैयार किया है उस पर आकर मुकाबला करना एनडीए के लिए मजबूरी बन जाएगी.

आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति का गठन

दरअसल बिहार चुनाव के पहले आरक्षण को लेकर एक बार फिर से सियासी जिन्न निकला हुआ है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद लगातार आरक्षण को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है हर राजनीतिक दल में आरक्षण के समर्थक तबके के नेता गोलबंद हो रहे हैं. अब आरजेडी ने भी आरक्षण के सहारे बिहार में अपनी चुनावी रणनीति का ब्लू प्रिंट तैयार किया है. तेजस्वी यादव ने पिछले दिनों ही इसकी रूपरेखा पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर तय कर दी थी. तेजस्वी ने बिहार में दलित तबके से आने वाले विधायकों के संयुक्त मोर्चा से अलग जाते हुए अपनी पार्टी के दलित विधायकों की बैठक बुलाई थी. उसके बाद जेडीयू एलजेपी से जुड़े विधायकों को बीजेपी से अलग आकर मोर्चे में शामिल होने का अवसर दिया गया था. एनडीए में शामिल जेडीयू और एलजेपी के दलित विधायक जब आरजेडी के पाले में नहीं आए तो आखिरकार आज आरजेडी की तरफ से बिहार विधानमंडल अनुसूचित जाति जनजाति आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति का गठन कर दिया गया. 



आरक्षण को पार्टी बनााएगी मुद्दा

बिहार में विपक्षी दलों से जुड़े अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग से आने वाले विधायकों का यह नया फोरम तैयार किया गया है. इस समिति से जेडीयू बीजेपी कांग्रेस और हम के विधायक के बाहर रखे गए हैं. आरजेडी ने आरक्षण के मुद्दे पर अपनी पार्टी के दलित विधायकों के जरिए अब आंदोलन तेज करने की तैयारी की है. आरजेडी कार्यालय में आज इन विधायकों की बैठक भी हुई और यह तय किया गया कि जल्द ही संघर्ष की अगली रणनीति का ऐलान किया जाएगा. अध्यक्ष शिवचंद्र राम ने कहा है कि आरजेडी के विधायक उन लोगों के साथ नहीं जा सकते जिन्होंने आरक्षण को बचाने की जगह आरक्षण को खत्म करने वाले लोगों का साथ दिया है. अब यह साफ हो गया है कि पार्टी आगामी चुनाव में 15 साल के लालू-राबड़ी शासनकाल के काट के तौर पर आरक्षण को 2015 की तरह फिर से मुद्दा बनाएगी.