PATNA: विकासशील इंसान पार्टी यानि वीआईपी पार्टी चलाने वाले मुकेश सहनी पिछले तीन महीने से बिहार के किसी गठबंधन में अपने लिए जगह तलाशने के जुगाड़ में लगे थे. पिछले 18 मार्च को जब तक बीजेपी ने बिहार में अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ सीट शेयरिंग का एलान नहीं किया, तब तक मुकेश सहनी ये आस लगाये थे कि भाजपा उन्हें जगह जरूर देगी. लेकिन भाजपा ने भाव नहीं दिया और आज आखिरकार तेजस्वी यादव ने वीआईपी पार्टी को तीन सीटें देकर बिहार के महागठबंधन का हिस्सा बना लिया.
मुकेश सहनी की दोस्ती से किसे फायदा
तेजस्वी यादव ने एलान किया कि महागठबंधन में हुए सीट शेयरिंग में राजद को 26 सीटें मिली हैं. उनमें से ती सीट वे वीआईपी को दे रहे हैं. राजद के प्रदेश कार्यालय में साझा प्रेस कांफ्रेंस में इसका एलान कर दिया गया. लेकिन इसके बाद सियासी गलियारे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या मुकेश सहनी से सियासी दोस्ती का लालू-तेजस्वी यानि राजद को कोई फायदा मिलने जा रहा है. 2019 और 2020 से लेकर अब तक का इतिहास बताता है कि राजद को किसी तरह का फायदा मिलने की उम्मीद बेहद कम है.
2019 के परिणाम से समझिये मुकेश सहनी का प्रभाव
मुकेश सहनी को अपने साथ जोड़ने से राजद को कितना नफा नुकसान होता है, इसके लिए 2019 के लोकसभा चुनाव का घटनाक्रम देखना जरूरी हो जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, जीतन राम मांझी के हम के साथ साथ मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी के साथ समझौता किया था. 2019 में सीट शेयरिंग कुछ इस तरह हुआ था-राजद को 20 सीट, कांग्रेस को 9, उपेंद्र कुशवाहा को पांच, जीतन राम मांझी को 3 और मुकेश सहनी को 3. राजद ने मुकेश सहनी की पार्टी को मुजफ्फरपुर, मधुबनी और खगडिया सीट दिया था.
जमानत जब्त हो गयी थी वीआईपी उम्मीदवार की
2019 के लोकसभा चुनाव की एक दिलचस्प बात रही. बिहार की 40 सीटों में से 39 सीट महागठबंधन हार गयी थी. लेकिन सिर्फ एक सीट ऐसी थी जहां महागठबंधन के उम्मीदवार का जमानत भी जब्त हो गया था. वह मधुबनी सीट थी, जहां मुकेश सहनी की पार्टी के उम्मीदवार बद्री पूर्वे चुनाव मैदान में थे. इस सीट पर बीजेपी ने साढ़े चार लाख वोट से भी ज्यादा से जीत हासिल की थी.
मल्लाह वोट बैंक की राजनीति करने वाले मुकेश सहनी ने 2019 में महागठबंधन के साथ मल्लाहों की राजधानी माने जाने वाले मुजफ्फरपुर से भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. मुजफ्फरपुर सीट पर वीआईपी पार्टी का उम्मीदवार करीब 4 लाख 10 हजार वोट से चुनाव हारा था.
खुद मुकेश सहनी हारे थे
महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने वाले मुकेश सहनी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद खगड़िया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. एनडीए की ओर से वहां लोजपा के उम्मीदवार थे महबूब अली कैसर. उन्हें एनडीए का कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा था. फिर भी महबूब अली कैसर ने मुकेश सहनी को करीब ढ़ाई लाख वोट से बड़ी शिकस्त दी थी.
2019 में वीआईपी ने करायी महागठबंधन की दुर्गति
आंकड़े बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी खुद हारी तो हारी, महागठबंधन की भारी दुर्गति करा दी. मुकेश सहनी जिस मल्लाह वोट बैंक की बात करते हैं, उनका प्रभाव मुजफ्फरपुर के अलावा वैशाली और दरभंगा जैसी लोकसभा सीटों पर है. उन तमाम जगहों पर महागठबंधन की करारी करारी हार हुई. आंकड़ों से समझिये कि 2019 में वीआईपी पार्टी का प्रदर्शन कैसा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में 19 सीटों पर लड़ने वाली राजद को हर सीट पर औसतन 33 परसेंट वोट आये. महागठबंधन की दूसरी पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को अपनी हर सीट पर करीब 32 परसेंट वोट मिला. लेकिन मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी को अपने हर सीट पर औसतन सिर्फ 22 परसेंट वोट मिला.
2020 में भी कोई असर नहीं दिखा
2019 में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने वाले मुकेश सहनी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भरी प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्वी यादव की फजीहत कर दी थी. 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन में सीट शेयरिंग के एलान के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलायी गयी थी. उसी प्रेस कांफ्रेंस में मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव पर पीठ में खंजर भोंकने का आरोप लगा दिया. मुकेश सहनी ने कहा कि वे डिप्टी सीएम पद के दावेदार है.
महागठबंधन से नाता तोड़ने के बाद मुकेश सहनी बीजेपी के पास पहुंच गये. बीजेपी 2020 में चिराग पासवान के एनडीए से बाहर जाने के बाद नया पार्टनर तलाश रही थी. बीजेपी ने 11 विधानसभा सीट देकर मुकेश सहनी की पार्टी को एनडीए का हिस्सा बना लिया. 2020 के चुनाव की सबसे दिलचस्प बात ये रही कि खुद मुकेश सहनी चुनाव हार गये. खास बात ये भी रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव में महबूब अली कैसर ने मुकेश सहनी को हराया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में महबूब अली कैसर के बेटे युसुफ सलाहुद्दीन ने मुकेश सहनी को हराया. यानि बाप-बेटा दोनों से मुकेश सहनी हारे.
उपचुनाव में भी नहीं छोड़ सके प्रभाव
2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में कई उपचुनाव हुए. 2020 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर के बोचहां से वीआईपी पार्टी के मुसाफिर पासवान विधायक बने थे. उनके असामयिक निधन के बाद 2022 में बोचहां में उप चुनाव हुआ. इस उपचुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी की उम्मीदवार गीता देवी तीसरे स्थान पर रही थीं. जबकि गीता देवी दिग्गज नेता रमई राम की पुत्री थी और रमई राम की उस क्षेत्र में मजबूत पकड़ थी. 2022 में ही मुजफ्फरपुर की कुढनी विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव हुआ. मुकेश सहनी ने बीजेपी को हराने के एलान के साथ अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया. नतीजा ये हुआ कि ये सीट राजद की थी और जीत बीजेपी ने हासिल कर लिया.
2024 में उम्मीदवार कहां से लायेंगे सहनी
ऐसे तमाम तथ्यों के बावजूद राजद ने 2024 के लोकसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी को तीन सीट दे दी है. ये भी दिलचस्प है कि बिहार विधानसभा में 12 विधायकों वाली भाकपा(माले) को इंडिया गठबंधन में 3 सीट मिली है और एक भी विधायक नहीं रहने के बावजूद वीआईपी पार्टी को भी 3 लोकसभा सीट मिली है. सवाल ये उठ रहा है कि मुकेश सहनी उम्मीदवार किसे बनायेंगे. मुकेश सहनी की पार्टी में उनके अलावा कोई दूसरा नेता नहीं है. मोतिहारी, गोपालगंज और झंझारपुर में से कोई सीट ऐसी नहीं है जहां से मल्लाह उम्मीदवार खड़ा किया जा सके.
जाहिर है मुकेश सहनी खुद भी चुनाव लड़ने से परहेज करेंगे. तो फिर उम्मीदवार कहां से आय़ेंगे. 2019 में उम्मीदवार चुनने का मुकेश सहनी का फार्मूला काफी चर्चा में रहा था. क्या उसी फार्मूले के तहत इस बार भी उम्मीदवार बनाये जायेंगे. वैसे चर्चा ये भी है कि राजद ने कहा है कि मोतिहारी और गोपालगंज में वह अपना उम्मीदवार देगी. यानि सिंबल वीआईपी पार्टी का होगा लेकिन उम्मीदवार राजद का होगा.
कुल मिलाकर कहें तो आंकड़े और तथ्य बता रहे हैं कि मुकेश सहनी को साथ लाकर तेजस्वी यादव को कोई बडा फायदा होने के आसार कम हैं. उन्होंने अपने गठबंधन में एक और पार्टी को शामिल जरूर कर लिया लेकिन पिछले चुनावों के परिणाम और आंकड़ों को नजरअंदाज कर गये. ऐसे में इस चुनाव में क्या होगा, ये देखना दिलचस्प होगा.