DELHI : जब से देश में कोरोना संक्रमण फैला है तभी से हर छोटे-बड़े कामों को लेकेर केंद्र सरकार ने दिशा निर्देश जारी किया है. घर से बाहर निकलने से लेकर हॉस्पिटल या दफ्तर जाने तक नियमों की फेहरिस्त जारी की है. इसी क्रम में कोरोना संक्रमित मरीज जिन की मौत हो गई है उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी तमाम तरह के निर्देशों का पालन करना अनिवार्य. कई जगह सरकारी महकमा ही इन लोगों का अंतिम संस्कार कर रही है.
ऐसे में दिल्ली के लोक नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) से एक ऐसी खबर आई है जिसे सुन कर आप भी दंग रह जायेंगे. दरअसल, एक व्यक्ति अपने भाई के शव को अंतिम विदाई देने से वंचित रह गया, वहीं दूसरे व्यक्ति ने उस शव को अपने पिता का समझ कर दफना दिया जो वास्तव में उनके पिता का नहीं था. जामा मस्जिद क्षेत्र निवासी अमीनुद्दीन के मुताबिक उनके भाई नईमुद्दीन को इलाज के लिए दो जून को एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पहले तो उनके भाई को भर्ती करने से मना कर दिया गया, हालांकि बाद में भर्ती कर लिया गया. बाद में इलाज के दौरान रात को उनकी मौत हो गई. परिवार ने जब शव मांगा तो कहा गया कि कोरोना जांच के बाद शव सौंपा जाएगा. शव के लिए परिजनों ने लगभग 70 घंटे तक इंतजार किया .
छह जून को उनको बताया गया कि नईमुद्दीन की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. इसके बाद जब भाई का शव लेने के लिए अमीनुद्दीन मोर्चरी गए, वहां उन्हें अस्पताल वालों ने कहा की उनके भाई का शव नहीं मिल रहा है. रविवार को जब वो दोबारा शव लेने पहुंचे तो पता चला की उस शव का अंतिम संस्कार हो गया है.
दरअसल, अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें बताया की उनके भाई का शव भूलवस पटपड़गंज निवासी एक परिवार को दे दिया गया है. उनके परिवार के सदस्य की मौत भी कोरोना से हुई थी. इस पुरे मामले में अस्पताल ने सफाई देते हुए कहा है की शव की पहचान परिवार को करनी होती है इस में अस्पताल की कोई गलती नहीं है. ये मामला सामने आने के बाद अस्पताल ने फैसला लिया है कि अब सीसीटीवी कैमरे के नीचे शव की पहचान कराई जाएगी, ताकि गलती की संभावना कम से कम रहे.