मोदी के मंत्री ने उठाया था सवाल.. क्यों जाते हैं विदेश पढ़ने, यूक्रेन में मारे गए भारतीय छात्र के पिता ने दे दिया जवाब

मोदी के मंत्री ने उठाया था सवाल.. क्यों जाते हैं विदेश पढ़ने, यूक्रेन में मारे गए भारतीय छात्र के पिता ने दे दिया जवाब

DESK : यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में हजारों भारतीयों की जान पर खतरा बना हुआ है. वहां बड़ी संख्या में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र फंसे हुए हैं. यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने के लिए चल रहे अभियान के बीच बार बार एक सवाल उठा रहा है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में छात्र वहां पढ़ाई करने क्यों जाते हैं. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी एक विवादित बयान दिया है. जोशी का कहना है कि विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने वाले 90 फीसदी स्टूडेंट भारत में क्वालीफायर तक पास नहीं कर पाते. केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि यह सही समय नहीं है, जब उन कारणों पर बात की जाए कि देश के लोग क्यों विदेश जाकर पढ़ाई करते हैं. 


संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी का ये बयान ऐसे समय आया है जब सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स को निकालने की कोशिशों में जुटी हुई है और खारकीव में रूसी हमले में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एक छात्र की मौत हो गई है. नवीन कई भारतीय छात्रों के साथ खारकीव शहर में अंडरग्राउंड ठिकाने पर थे. मंगलवार सुबह गवर्नर हाउस के सामने फूड पैकेट बांटे जा रहे थे. नवीन भी वहां फूड पैकेट लेने पहुंचे थे. तभी रूसी सेना ने हमला बोल दिया. नवीन की मौके पर ही मौत हो गई.


वहीं नवीन शेखरप्पा के पिता का बयान भी सामने आया है. नवीन शेखरप्पा के पिता ने कहा कि पीयूसी में 97 फीसदी अंक हासिल करने के बावजूद बेटा कर्नाटक में मेडिकल सीट हासिल नहीं कर सका. साथ ही कहा कि मेडिकल सीट पाने के लिए यहां करोड़ों रुपए देने पड़ते हैं जबकि छात्र कम पैसे खर्च करके विदेश में समान शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.


आपको बता दें कि भारत के हजारों विद्यार्थी हर साल मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख करते हैं. इसका एक मुख्य कारण तो यह है कि कुछ देशों में एमबीबीएस की डिग्री भारत के मुकाबले कम खर्चे पर हासिल की जा सकती है. हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि विदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाना भी भारत के मुकाबले आसान है जहां सीमित सीटों के लिए काफी ज्यादा प्रतिस्पर्धा होती है. 


एक आंकड़े के मुताबिक मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाले 60% भारतीय स्टूडेंट्स चीन, रूस और यूक्रेन पहुंचते हैं. इनमें भी अक्सर करीब 20% अकेले चीन जाते हैं. इन देशों में एमबीबीएस के पूरे कोर्स की फीस करीब 35 लाख रुपये पड़ती है जिसमें छह साल की पढ़ाई, वहां रहने, कोचिंग करने और भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट क्लियर करने का खर्च, सबकुछ शामिल होता है. इसकी तुलना में भारत के प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की केवल ट्यूशन फीस ही 45 से 55 लाख रुपये या इससे भी ज्यादा पड़ जाती है.