जातीय गणना पर गरमाई बिहार की सियासत, सुशील मोदी ने बताया.. कोर्ट में नीतीश सरकार की क्यों हुई फजीहत

जातीय गणना पर गरमाई बिहार की सियासत, सुशील मोदी ने बताया.. कोर्ट में नीतीश सरकार की क्यों हुई फजीहत

PATNA: पटना हाई कोर्ट ने बिहार में जातीय गणना पर रोक लगा दिया है। हाई कोर्ट के इस फैसले से नीतीश सरकार की भारी किरकिरी हुई है। बिहार में अब इसको लेकर सियासत भी रेज हो गई है। विरोधी दल इसे सीधे तौर पर नीतीश सरकार की नाकामी बता रहे हैं। बीजेपी सांसद और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि बिहार की सरकार हाई कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे सकी, जिसका नतीजा हुआ की अदालत ने स्टे लगा दिया। उन्होंने कहा कि यह नीतीश कुमार की व्यक्तिगत नाकामी है और इससे मुख्यमंत्री का पिछड़ा विरोधी चेहरा बेनकाब हो गया है।


सुशील मोदी ने कहा कि सरकार ने अगर अच्छा वकील खड़ा किया गया होता तो जातीय गणना पर रोक नही लगती। जातीय गणना का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में गया तो वहां देश के नंबर वन वकील के प्रयास का ही नतीजा था कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पटना हाई कोर्ट वापस भेजा और तीन दिनों के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया। बहस के दौरान जो मुद्दे कोर्ट में उठे उसका जवाब बिहार सरकार के वकील नहीं दे सके। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि नीजता के अधिकारों का हनन हो रहा है। कोर्ट को बताया गया कि बिहार की सरकार सर्वे के नाम पर जातीय गणना कर रहे हैं, जिसका अधिकार संविधान ने राज्य सरकार को नहीं दिया है। 


सुशील मोदी ने कहा कि एक तरफ सरकार कह रही है कि जाति बताना बाध्यता नहीं है और दूसरी तरफ सरकार गाइडलाइन जारी करती है कि अगर घर की महिला या पुरुष जाति नहीं बता पाते हैं तो पड़ोसी से पूछकर भरा जा सकता है। इन बातों का जवाब बिहार सरकार को देना था लेकिन कोर्ट में बिहार सरकार के वकील कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे थे। बिहार में जब एनडीए की सरकार थी, उसी वक्त जातीय गणना का फैसला लिया गया था। बिहार में जातीय गणना कोई आरजेडी की सरकार सरकार का फैसला नहीं था। एक तो पहले ही इस काम में देरी हो चुकी है और अब हाई कोर्ट के सवालों का सरकार जवाब नहीं दे सकी। सुशील मोदी ने इसे पूरी तरह से नीतीश सरकार की नाकामी बताया है।


उन्होंने कहा कि नगर निकाय चुनाव में भी अतिपिछड़ों के आरक्षण से जुड़ा जो मुद्दा था, बार बार बीजेपी के लोग कह रहे थे कि सरकार अतिपिछड़ा आयोग का गठन करे लेकिन नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया। अंत में जब कोर्ट की फटकार लगी और चुनाव को स्थगित करना पड़ा। फिर जो आयोग जल्दबाजी में बनाया गया उसकी रिपोर्ट को पब्लिक तक नहीं किया गया। उसी तरह से आज फिर से सरकार की नाकामी के कारण जनगणना को स्थगित करने पड़ा है। ये नीतीश का व्यक्तिगत फेल्योर है और इससे उनका पिछड़ा विरोधी चेहरा बेनकाब हो गया है।


बीजेपी सांसद ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अब बिहार से कोई मतलब नहीं है और वे तो अब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बन गए हैं। वे अपने सपने को पूरा करने में लगे हैं उन्हें बिहार के लोगों से कोई मतलब नहीं है। आधा से ज्यादा सर्वे का काम हो गया और उसके बाद हाई कोर्ट से स्टे लग गया और सरकार कोर्ट के अंदर बातों का जवाब नहीं दे पाए, इससे ज्यादा बिहार सरकार की किरकिरी नहीं हो सकती है। हाई कोर्ट से स्टे लगने के बाद अब यह मामला लंबा खींच गया है। बीजेपी हमेशा से जातीय गणना के पक्ष में थी लेकिन बिहार सरकार उसमें फेल हो गई है।