PATNA : लोकसभा चुनाव की डुबडुगी बजने के साथ ही चुनाव का प्रचार-प्रसार का दौर भी शुरू हो चुका है। बिहार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक सप्ताह केंदर बिहार में दूसरी चुनावी रैली को सम्बोधित कर चुके हैं। लेकिन, दूसरी तरफ महागठबंधन में अभी भी प्रत्याशियों के चयन का मामला उलझता दिख रहा है।
दरअसल, समय रहते सीटों का बंटवारा न होना और घटक दलों को मन मुताबिक सीटें नहीं मिलना महागठबंधन में किचकिच का कहीं कारण तो बन रहा है? इसके साथ ही अब यह मामला गठबंधन में नाराज चल रहे नेताओं के दल छोड़ने तक पहुंच चुका है। इसका एकमात्र कारण राजद की दबंगई बताई जाती है, जिसने एकतरफा निर्णय लेते हुए महत्वपूर्ण घटक दल कांग्रेस के प्रत्याशियों को कठिन चुनावी मैदान में भेज दिया है और अब अपने प्रत्याशियों का चयन मनमानी ढंग से कर रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि, सीट बंटवारे से पहले ही लालू ने औरंगाबाद से राजद प्रत्याशी अभय कुशवाहा को राजद का सिंबल भी दे दिया। इससे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार मन मसोस कर रह गए। ऐसे में यहां महागठबंधन का प्रचार अभियान एकाकी होकर रह गया है। वहीं, औरंगाबाद के पड़ोस की लोकसभा सीट गया की स्थिति असहज नहीं दिखती। क्योंकि उस सीट पर राजद की दावेदारी स्वाभाविक थी।
हालांकि, उससे सटे नवादा में भी महागठबंधन का पेंच उलझता हुआ दिख रहा है। जेल में बंद पूर्व सांसद राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव मोल-जोल के साथ चुनाव मैदान में निर्वदलीय ही डटे हुए हैं। इसके अलावा कुछ नाराज लोग जमुई में भी हैं। हालांकि, यहां की प्रत्याशी अर्चना रविदास के लिए यह पहला चुनावी अनुभव है और गनीमत यह कि अर्चना को दलीय नेतृत्व से पर्याप्त दिशा-निर्देश मिल रहा है।
उधर, इस पूरे मामले में राजनीतिक जानकारों का यह कहना है कि यदि विपक्षी एकता की पहल के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय मानी गई होती तो आज बिहार में महागठबंधन कुछ और हैसियत में होता। ऐसा राजद के कारण नहीं हुआ, क्योंकि उसे महागठबंधन में अपना दबदबा चाहिए था। जिसके बाद नीतीश ने अलग राह ले ली तो यह इत्मीनान हुआ कि अब सीट बंटवारे में कोई पेच नहीं रहा। लेकिन लालू प्रसाद के रहते राजनीति बिना दांवपेच के हो ही नहीं सकती। लिहाजा अब मामला कैंडिडेट तय करने पर फंस गया है।