DESK : झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्यपाल के अधिकारों में कटौती कर दी है. दरअसल जो अधिकार पहले राज्यपाल के पास थे अब वह मुख्यमंत्री को दे दिए गए हैं . इस बात का खुलासा आज संसद में लोकसभा की कार्यवाही के दौरान हुआ. लोकसभा में प्रश्न-उत्तर काल के दौरान झारखंड में ट्रायबल एडवाइजरी कमिटी का मामला उठा. इस कमेटी के अध्यक्ष पहले राज्यपाल हुआ करते थे लेकिन झारखंड की सोरेन सरकार ने इसमें फेरबदल कर अध्यक्ष का पद मुख्यमंत्री को दे दिया. अब यह मामला संसद में उठा तो केंद्र सरकार हरकत में आई है. केंद्र सरकार ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए झारखंड सरकार को संविधान के अनुरूप व्यवहार करने के लिए कहा है.
झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने आज लोकसभा में ट्रायबल एडवाइजरी काउंसिल को लेकर सवाल किया. उन्होंने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से इस सम्बन्ध में सवाल किया. दरअसल केंद्रीय मंत्री ने अपनी बात कहते हुए यह कहा था कि ट्रायबल एडवाइजरी काउंसिल की राज्यपाल समीक्षा करते हैं. उसके बाद राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजी जाती है. राज्यों को मंत्रायल के माध्यम से कहा गया है कि ट्रायबल एडवाइजरी काउंसिल का जो इफेक्टिव रोल है, उसको सुनश्चित करना चाहिए. जनजातीय क्षेत्रों में विस्थापन, रोजगार और जल जंगल जमीन से जुड़ा हुआ विषय रहता है उसको गंभीरता से विचार करें.
इस बात पर सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि झारखंड में राज्यपाल को ट्रायबल एडवाइजरी काउंसिल से हटा दिया गया है. इसका चार्ज मुख्यमंत्री के पास है. क्या यह संवैधानिक है. क्योंकि कांग्रेस ने भारतीय संविधान को तहस नहस कर दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल के अधिकार को जो झारखण्ड सरकार ने ख़त्म किया है उसको लेकर मंत्री जी क्या सोचते हैं. इसके बाद अध्यक्ष ने कहा कि हम इसको देख लेंगे.
इसके बाद मंत्री ने कहा कि यह मामला हमारे संज्ञान में आया है. सलाहकार परिषद के जो गठन है वह वहां के राज्य सरकार के अनुशंसा के तहत राज्यपाल को स्वीकृति के उपरान्त इस जनजातीय सलाहकार परिषद की अधिसूचना गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से करना है. इस मामले से राज्यपाल ने विधि विभाग को अवगत करा दिया है. विधि मंत्रालय ने भी यह सुझाव दिया है कि जिस मामले में वहां की सरकार ने इस तरह की नीति अपनाई है जिसके वजह से राज्यपाल के अधिकार को नजरअंदाज किया गया है, उसको फिर से राज्यपाल के पास भेजा जाए.