Bihar News: रेलवे ट्रैक पर जा फंसा बेलगाम ट्रक, तीन घंटे तक कई महत्वपूर्ण ट्रेनें बाधित Bihar Transfer-Posting: बिहार प्रशासनिक सेवा के 10 अफसरों का ट्रांसफर, पूरी लिस्ट देखें.... Bihar News: जमीन कब्जे को लेकर हथियारों से लैस दबंगों का उत्पात, कई महिलाएं गंभीर रूप से घायल Bihar Transfer-Posting : बिहार के एक SDO ने नौकरी क्यों छोड़ दी..? नीतीश सरकार ने दी स्वैच्छिक सेवानिवृति Bihar Ias Transfer: नीतीश सरकार ने दो आईएएस अफसरों का किया ट्रांसफर, पश्चिम बंगाल कैडर की इस महिला IAS को दी यह जिम्मेदारी... Bihar Politics: विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर को बड़ा झटका, जन सुराज के बड़े नेता ने पार्टी से दिया इस्तीफा Rashtriya Janata Dal: बिहार चुनाव से पहले RJD की बड़ी रणनीति, P.hd प्रवक्ताओं की उतार दी फौज! Bihar News: हादसे की शिकार हुई बारात जा रही बस, दो दर्जन से अधिक बाराती घायल; दो की हालत नाजुक Bihar Politics : अल्लाबरू को अखिलेश सिंह का करारा जवाब, तेजस्वी ही होंगे महागठबंधन का चेहरा! Bihar tribal voters: बिहार में पहली बार इस समाज के हर वयस्क को मिला वोट का हक ,कभी नहीं जानते थे वोट क्या होता है!
DESK : रोजी-रोटी की तलाश में इंसान अपने घर परिवार से दूर जाने को मजबूर होता है. पर जब कोई काम-धंधा न रह जाए तो वापस अपने घर लौटने में ही भलाई है. यही सोच कर देश के करोड़ों प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर वापस लौटने की जद्दोजहद में लागे हुए हैं. कुछ खुशनसीब लोग तमाम मुश्किलों को झेलते हुए वापस लौट भी आए, पर परेशानियां हैं कि उनका पीछा नहीं छोड़ रही. शहरों को छोड़ गांव वापस लौट रहे मजदूरों को अपने लोगों का ही विरोध झेलना पड़ रहा है. जब परिवार और ग्रामीणों ने उन्हें नहीं स्वीकारा तो ये मजदूर गंगा नदी में शरण लेने को मजबूर हो गए हैं.
ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश के वाराणसी के नजदीक कैथी गांव का है. यहां दो मजदूर, पप्पू और कुलदीप निषाद गुजरात के मेहसाणा से लौटे तो उनके परिवार और गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. अब, वो अपने ही गांव में गंगा नदी में एक नाव पर रह रहे हैं. इन दो दोस्तों को नाव पर रहते हुए लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत चूका फिर भी इन्हें अभी अपने गांव में एंट्री नहीं मिल पाई है.
गांव में जरूरत का सामान लेने गए तो घुसने नहीं दिया
लॉकडाउन में फंसे होने के दौरान लाख दुश्वारियों और मुश्किलों को झेलते हुए मेहसाणा से अपने गांव कैथी पहुंचे. जब गांव में घुसने नहीं मिला तो नाव पर ही अपना बसेरा बना लिया. हद तो तब हो गई जब ये खुद गांव में जरूरत का सामान लेने गए तो ग्रामीणों ने घुसने नहीं दिया.
इस बारे में कुलदीप बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बाद भी मालिक ने पैसे नहीं दिए तो अन्य लोगों से मदद मांगकर श्रमिक ट्रेन से गाजीपुर तक आए. वहां थर्मल स्क्रीनिंग और ब्लड चेक कराकर बस से वाराणसी अपने गांव कैथी आ गए. जब ग्रामीणों ने गांव में घुसने नहीं दिया तब से नाव पर ही रह रहे हैं. चूंकि साग-सब्जी नहीं मिल रही है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा रहे हैं.
नहीं मिली है कोई सरकारी मदद
कुलदीप आगे बताते हैं कि उनके गांव में बहुत से श्रमिक देश के कोने कोने से लौटे हैं, लेकिन कम ही लोग क्वारनटीन का पालन कर रहे हैं. इस घड़ी में कुलदीप के माता-पिता तक ने उनको घर में घुसने से रोक दिया. तभी से वे नाव पर आकर लगभग ढाई हफ्तों से रह रहे हैं. कभी-कभी घर से खाना और कुछ पैसा मिल जाता है, लेकिन किसी तरह की सरकारी मदद अभी तक नहीं मिली है.
पहली बार पप्पू गए थे गांव से बाहर
कुलदीप के साथ ही गांव वापस लौटे पप्पू निषाद पहली बार गांव से बाहर तीन महीने पहले गए थे.काम शुरू होने के कुछ दिन बाद ही लॉक डाउन हो गया. मेहसाणा में वे भी गन्ने की मशीन चलाया करते थे. किसी तरह अपने गांव तक आए तो गांव में घुसने तक नहीं मिला. लिहाजा दोनों नाव पर रहते हैं. कभी-कभी कुलदीप के घर से मदद मिल गई तो ठीक नहीं तो मछली मारकर अन्य मल्लाह साथी दे देते हैं तो वही खा कर गुजरा करते हैं.