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Bihar News: झंडा चौक पर 77वीं बार आधी रात को फहराया गया तिरंगा, स्वतंत्रता सेनानी परिवार ने निभाई परंपरा

Bihar News: पूर्णिया के ऐतिहासिक झंडा चौक पर स्वतंत्रता दिवस की रात 12:01 बजे तिरंगा फहराया गया। यह परंपरा 1947 से लगातार निभाई जा रही है, जिसमें इस बार स्वतंत्रता सेनानी पट्टो बाबू के परिवार के सदस्य ने झंडोत्तोलन किया।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 15 Aug 2025 09:45:11 AM IST

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बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE

Bihar News: जैसे ही घड़ी की सुई 12:01 पर पहुँची, झंडा चौक, पूर्णिया में राष्ट्रीय ध्वज पूरे सम्मान के साथ लहरा उठा। यह सिर्फ झंडोत्तोलन नहीं था, बल्कि एक ऐतिहासिक परंपरा का जीवंत प्रतीक था, जो 1947 से निरंतर चली आ रही है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय वाघा बॉर्डर की तरह ही, पूर्णिया का झंडा चौक देश में उन चुनिंदा स्थानों में शामिल है, जहां हर साल स्वतंत्रता दिवस की आधी रात को झंडोत्तोलन होता है।


इस वर्ष भी, इस ऐतिहासिक परंपरा को निभाते हुए स्वतंत्रता सेनानी पट्टो बाबू के परिवार के सदस्य विपुल सिंह ने ध्वजारोहण किया। विपुल सिंह ने बताया कि 15 अगस्त 1947 की आधी रात को जब भारत की आजादी की घोषणा आकाशवाणी (रेडियो) पर की गई थी, उसी समय उनके दादा रामेश्वर प्रसाद सिंह, रामरतन साह और शमशुल हक जैसे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने भट्ठा बाजार में पहली बार मध्य रात्रि में तिरंगा फहराया था।


भट्ठा बाजार का यह स्थान, जो अब ‘भट्ठा झंडा चौक’ के नाम से जाना जाता है, स्वतंत्रता संग्राम के उस स्वर्णिम क्षण का गवाह रहा है। तभी से हर वर्ष, 14 अगस्त की रात को ठीक 12:01 बजे, यहां तिरंगा लहराने की परंपरा निभाई जाती है। इस अवसर पर शहरवासियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के अधिवक्ता चंदन सिंह ने बताया कि कार्यक्रम में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, हर वर्ग के लोगों ने भाग लिया। भारत माता की जय, वंदे मातरम् और इंकलाब जिंदाबाद के नारों से पूरा इलाका गूंज उठा।


कार्यक्रम में पूर्णिया के विधायक विजय खेमका, मेयर विभा कुमारी और अन्य जनप्रतिनिधि भी अपने काफिले के साथ पहुंचे। उनकी मौजूदगी से कार्यक्रम की भव्यता और देशभक्ति का जोश और भी बढ़ गया। युवाओं में आज़ादी का उत्सव मनाने को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। इस ऐतिहासिक परंपरा ने एक बार फिर यह साबित किया कि स्वतंत्रता केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जीवंत स्मृति और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है, जिसे पूर्णिया की धरती ने अब तक संजोए रखा है।