PATNA : शराबबंदी वाले राज्य में जहरीली शराब के कारण हो रही मौत हो लेकर हर तरफ सरकार की क किरकिरी हो रही है। अब यह सवाल किया जा रहा है कि, जब राज्य में 2016 से ही शराब पीने या बेचने पर पाबंदी थे तो फिर शराब मिल कैसे रही है और लोग इस कानून को मान क्यों नहीं रहे हैं। इसके साथ ही शराबबंदी वाले राज्य के जहरीली शराब से कारण इतनी मौत पर भी कोई कड़ा एक्शन क्यों नहीं ले रहे हैं। क्या सरकार की नकामी है या कोई साजिश। इसका जवाब जो कुछ ही हो, लेकिन बिहार की राजनीति इन दिनों यह सवाल हर एक विरोधी द्वारा यही सवाल दुहराया जा रहा है। इसी कड़ी में अब एक नाम और जुड़ गया है। अब आज जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार द्वारा भी बिहार में लागु शराबबंदी कानून को फेल बताया गया है।
जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा है कि, बिहार में शराबबंदी विफल है, बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा शराब से मरने वाले लोगों के ऊपर दिए गए बयान बिहार को शर्मसार करने वाला है। इसलिए जल्द से जल्द शराबबंदी की समीक्षा करनी चाहिए। बिहार सरकार शराबबंदी को वापस ले और जो लोग जहरीली शराब से मर रहे हैं उसके लिए जवाबदेही तय करे।
दरअसल, बिहार के छपरा में जहरीली शराब से अबतक 80 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। जिसको लेकर अभी विपक्षी पार्टी गोलबंद होकर सीएम नीतीश कुमार को कुसुरवार ठहराया रही है। वहीं, सीएम साफ़ तौर पर कह रहे हैं कि ' जो पिएगा-वो मरेगा, कोई भी मुयाबजा नहीं मिलेगा'। जिसके बाद जब उनके इस बयान को लेकर हर जगह हांला बोला जा रहा है। इसी को लेकर आज जनतांत्रिक विकास पार्टी द्वारा भी मुख्यमंत्री के इस योजना की पोल खोली गयी।
जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार ने बताया कि, बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागु हुई है। उस समय से लेकर अबतक राज्य में जहरीली शराब के कारण 3000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। जहरीली शराब से मरने वाले लोगों की संख्या सरकार के पास नहीं है। सरकार कहती है कि महज 300 लोग ही इन 6 सालों में शराब पीकर मरे हैं। यह आंकड़ों की बाजीगरी है छपरा में ही अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है,लेकिन सरकारी तंत्र उसे 50 बनाने में लगी है।
अनिल कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार ने जब सत्ता संभाली थी उस समय बिहार में शराब की लगभग 3095 दुकान बिहार में खुली थी। देसी और विदेशी शराब मिलाकर आजादी के बाद से लेकर जंगलराज के समय तक इतनी दुकानें बिहार में खुली थी और नीतीश कुमार जी के 10 के शासनकाल में इतनी ही शराब की दुकान खुली है। हर साल शराबबंदी से बिहार सरकार को 4000 करोड़ का राजस्व घाटा होता है। नीतीश कुमार की सरकार ने पहले गांव-गांव में लोगों शराब पीने का लत लगाया और फिर शराबबंदी कर दी। इससे साफ लगता है कि नीतीश कुमार जी ने बिहार में शराबबंदी नहीं सरकारी खजाने जाने वाले राजस्व की बंदी की है। शराब से जो सालाना 4000 करोड़ रुपए सरकारी कोष में जाता था, उसे नीतीश कुमार ने माफियाओं के पास ट्रांसफर कर दिया। और सरकार की तरह माफियाओं की एक समानांतर व्यवस्था कर दी जहां 4000 करोड़ पर जाने लगे
अनिल कुमार ने कहा कि बिहार में सरकार ने शराबबंदी के नाम पर आंख में धूल झोंकने का काम किया है, क्योंकि जब शराबबंदी के बावजूद शराब की खपत बिहार में धड़ल्ले से हो रही है। इसके बाद आए दिन लोग मर रहे हैं। किसी का लीवर खराब हो रहा है। किसी के आंख की रोशनी जा रही है, तो यह कैसी शराबबंदी है? उन्होंने पूछा कि कि शराब के माफिया कौन है इसकी पहचान करने की जरूरत है। मुझे लगता है शराब के अवैध व्यापार में सरकारी तंत्र की मिलीभगत है। यही वजह है कि नीतीश कुमार की सरकार माफिया राज पर दबाव नहीं बना पा रही है और बिहार में खुलेआम शराब बिक रही। इसलिए इस शराब नीति की समीक्षा कर समाप्त की जाए।