PATNA : कोरोना की दूसरी लहर के 133 दिन बाद स्कूल खुलने के बावजूद भी बच्चों की उपस्थिति काफी कम रही. दरअसल बिहार में कोरोना के बाद बच्चे अब बाढ़ की मार झेल रहे हैं. राजधानी पटना समेत सूबे के कई जिलों में बच्चों का अटेंडेंस काफी कम रहा. भोजपुर, बक्सर, वैशाली और नालंदा समेत तमाम जिलों में बाढ़ के कारण बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पा रहे हैं. बाढ़ग्रस्त ज्यादातर इलाकों में स्कूल बंद ही रखे गए.
बिहार के 72 हजार सरकारी स्कूलों के साथ-साथ प्राइवेट स्कूलों को भी खोल दिया गया है. सोमवार से पहली से आठवीं तक की भी पढाई शुरू हो गई. कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए 50 फीसदी विद्यार्थियों को स्कूल आना था, लेकिन पहले दिन ज्यादातर स्कूलों में उपस्थिति बहुत ही कम रही. बिहार के सरकारी स्कूलों में लगभग 15 प्रतिशत बच्चे ही पहुंच पाए जबकि प्राइवेट स्कूलों में उपस्थिति ठीक ठाक रही.
गौरतलब हो कि बिहार के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शुक्रवार को ही सभी डीईओ को स्कूलों के नियमित संचालन, पूरी घंटी पढ़ाई और सभी शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए तत्काल इंस्पेक्शन कराने को कहा था. लेकिन पहले ही दिन कई जिलों में शिक्षक गायब मिले. शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि सभी जिलों से प्रारंभिक स्कूलों का संचालन आरंभ होने को लेकर सकारात्मक सूचनाएं आई हैं. उन्होंने कहा कि दो चार दिन में बच्चों की उपस्थिति भी बेहतर हो जाने के आसार हैं.
सोमवार को भोजपुर जिले के कुल 1956 स्कूलों में उपस्थिति करीब 30 फीसदी रही. इनमें बाढ़ प्रभावित स्कूलों की संख्या 210 है, जहां पढ़ाई बाधित रही. बक्सर में भी 1080 प्राइमरी और मध्य विद्यालयों में से एक सौ विद्यालय बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में है, जो नहीं खुले. वैशाली में विद्यालयों में 25 फीसदी के करीब उपस्थिति रही. वहीं 212 स्कूल जलजमाव और बाढ़ के कारण बंद कर दिए गए.
सासाराम में 25 फीसदी ही बच्चे कक्षाओं में पहुंच सके. सोशल डिस्टेंसिंग तो दूर बिना मास्क के बच्चे स्कूल आए. माना अजा रहा है कि छात्राओं की संख्या अंतिम सोमवारी होने से काफी कम रही. जहानाबाद जिले में सरकारी स्कूलों में 20 से 25 फीसदी बच्चे ही आए जबकि निजी विद्यालयों में करीब 40 फीसदी से अधिक बच्चे पढ़ने को आए थे. छपरा में बाढ़ग्रस्त इलाको के विद्यालयों में पढ़ाई शुरू हो पाना सम्भव नहीं हो सका. गोपालगंज जिले के 1775 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में दस से बीस फीसदी बच्चे ही उपस्थित हुए.