आंदोलन करने वालों को नौकरी-ठेका न देने का फैसला : नीतीश सरकार ने 2006 में ही दिया था आदेश, डीजीपी बोले- हमने तो सिर्फ उसे दुहराया

आंदोलन करने वालों को नौकरी-ठेका न देने का फैसला : नीतीश सरकार ने 2006 में ही दिया था आदेश, डीजीपी बोले- हमने तो सिर्फ उसे दुहराया

PATNA : बिहार में धरना-प्रदर्शन से लेकर सड़क जाम करने वालों को सरकारी नौकरी और ठेका-पट्टा नहीं देने के मामले में पूरी दुनिया में नीतीश सरकार की भद्द पिटने के बाद सूबे के बड़े अधिकारी सफाई देने मैदान में आये. बिहार के डीजीपी बोले कि कानून तोड़ने वाले को सरकारी नौकरी नहीं देने का आदेश तो 2006 में ही निकाला गया था, हमने तो सिर्फ पुराने आदेश को दुहराया है. डीजीपी के साथ साथ बिहार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने सफाई दी है कि सरकारी नौकरी या ठेका नहीं देने का फैसला सिर्फ उन पर लागू होगा जिन्होंने कानून तोड़ा होगा. शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने वालों पर कार्रवाई नहीं होगी.


दरअसल पांच दिन पहले बिहार के डीजीपी एसके सिंघल ने पत्र जारी किया था. इस पत्र में चरित्र प्रमाण पत्र बनाने के लिए बिहार पुलिस को दिशा निर्देश दिया गया था. पत्र में डीजीपी ने लिखा था“यदि कोई व्यक्ति विधि-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम, इत्यादि मामलों में संलिप्त होकर किसी आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसे इस कार्य के लिए पुलिस द्वारा आरोप पत्रित किया जाता है तो उनके संबंध में चरित्र सत्यापन प्रतिवेदन में विशिष्ट एवं स्पष्ट रूप से प्रविष्टि की जाये. ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि उन्हें सरकारी नौकरी/ठेके आदि नहीं मिल पायेंगे.”


बिहार के डीजीपी का ये फरमान पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया था. भारत की छोड़िये न्यूयार्क के अखबारों में इस पर खबर छप रही थी. लिहाजा आज बिहार सरकार ने सफाई देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलायी. बिहार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी और डीजीपी एस के सिंघल सफाई देने बैठे. कहा-सरकार की नियत पर शक नहीं करें. हम तो उनकी बात कर रहे हैं जो कानून तोड़ते हैं. जो शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी.


2006 का ही आदेश 
डीजीपी ने कहा कि 1 फरवरी को लिखा गया उनका पत्र नया नहीं है. सरकार ने तो पहले ही फैसला ले लिया था. वे तो बस सरकार के आदेश को दुहरा रहे थे. देखिये डीजीपी ने क्या कहा “ बिहार सरकार में स्वच्छ छवि के कर्मचारी नियुक्त हो सकें, इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने 8 जुलाई 2006 को ही आदेश निकाला था. इसमें कहा गया था कि सरकारी नौकरी के लिए अनुशंसित अभ्यर्थियों का चरित्र सत्यापन करना है, उनके चरित्र प्रमाण पत्र में उनके खिलाफ आपराधिक मामलों को अंकित करना है. नीतीश सरकार के समय ही 2020 की 23 जुलाई को भी सरकार ने फिर से आदेश निकाला था, जिसमें सरकारी नौकरी करने वाले के चरित्र का सत्यापन करने के बाद ही नौकरी में रखने का आदेश दिया गया था.”


यानि डीजीपी के बयान का मतलब ये निकाला जाना चाहिये कि नीतीश कुमार ने सत्ता में आने 8 महीने बाद ही ये आदेश निकाल दिया था कि जिसने किसी तरह से कानून तोड़ा हो, उसे सरकारी नौकरी नहीं दी जाये. 


बिहार सरकार के अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सरकारी नौकरी या ठेका नहीं देने का फैसला उन पर लागू होगा जिन पर कोई मुकदमा होगा और पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया होगा. यानि सरकार ये मान रही है कि पुलिस जिस पर चार्जशीट कर देगी वह दोषी हो जायेगा और उसे कोई सरकारी नौकरी या ठेका नहीं मिलेगा. डीजीपी और गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव से पूछा गया कि क्या इससे पुलिस की मनमानी नहीं बढ़ेगी. अधिकारियों ने कहा कि पुलिस में न्याय की बेहतर व्यवस्था है. लिहाजा अन्याय होने का चांस ही नहीं है.