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बेगूसराय में सिमरिया घाट पर लॉकडाउन वाला सन्नाटा, शव जलाने में आयी 90 फीसदी से अधिक की कमी

1st Bihar Published by: Jitendra Kumar Updated Wed, 08 Apr 2020 07:05:54 PM IST

बेगूसराय में सिमरिया घाट पर लॉकडाउन वाला सन्नाटा, शव जलाने में आयी 90 फीसदी से अधिक की कमी

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BEGUSARAI : कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से हर कोई तबाह है। करीब-करीब सभी लोग घरों में कैद हैं। मंदिर-मस्जिद भी बंद है तथा भगवान एवं अल्लाह होम क्वारेन्टाइन में चले गए हैं। इस दौरान श्मशान घाट में दिख रहे परिदृश्य के अनुसार यमराज भी होम क्वारेन्टाइन में चले गए हैं। मिथिलांचल के विख्यात मोक्ष स्थली सिमरिया गंगा घाट पर जहां कोरोना के कहर से पहले प्रत्येक दिन 50 से 60 शवों का अंतिम संस्कार होता था। लेकिन उसके बाद से रोज मुश्किल से तीन से चार शव अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं। जिसके कारण श्मशान के राजा कहे जाने वाले मल्लिक समुदाय के साथ-साथ इससे जुड़े लोगों के भी रोजी-रोटी पर संकट आ गया है।


पहले जब 50 से 60 शव यहां रोज आती थी तो अग्निदान देने के लिए मल्लिक (डोम) समुदाय के लोग नजराना लेते थे। इससे उनका परिवार चलता था। शव के साथ वाले कपड़े और बांस बेचते थे। लाश जलने के बाद बचे कोयले का भी धंधा चलता था। लेकिन अब शव ही नहीं आ रहा है तो वह क्या नजराना लेंगे और क्या कपड़ा और कोयला बेचेंगे।


सिमरिया गंगा घाट पर के किनारे इस समुदाय के 64 लोग अग्निदान की रस्म पूरी कराने में लगे रहते हैं। इससे जुड़े मुकेश मल्लिक बताते हैं कि हम लोग वंशावली के आधार पर पारंपरिक रूप से इस पेशे से जुड़े हुए हैं और इसी से रोजी-रोटी चलती है। यहां अंतिम संस्कार करने के लिए बेगूसराय के अलावे समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, लखीसराय, जमुई तक से लोग आते थे।लेकिन लॉकडाउन के बाद गंगा किनारे स्थित मोक्ष स्थली श्मशान में सन्नाटा पसर गया है। मुश्किल से तीन-चार शव रोज आती है, लग रहा है कि कोरोना के कहर से बचने के लिए यमराज भी होम क्वारेन्टाइन में चले गए हैं या फिर सोशल डिस्टेंसिंग से बचने के लिए यहां आने वालों की संख्या कम गई है। लोग यहां जब दूर दराज से शव जलाने आते तो थे मल्लिक समुदाय के साथ-साथ पंडा, पुरोहित, होटल व्यवसाय एवं ठेकेदार से जुड़े सैकड़ों परिवार की आजीविका इसी से चलती थी।


हालांकि सिमरिया में शव नहीं आने का दो प्रमुख कारण है कि सोशल डिस्टेंस के कारण अंतिम संस्कार में जाने के लिए कम लोग तैयार होते हैं। वाहन के अभाव में लोग अपने गांव के आस-पास बगीचा या किसी मृत नदी के किनारे भी अंतिम संस्कार की रस्म अदा कर रहे हैं।कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों को अगर अलग कर दे तो इन दिनों मौत के आंकड़ों में खासी कमी आयी है। फिलहाल मामला जो भी हो लेकिन सिमरिया गंगा के किनारे अंतिम संस्कार के लिए शव कम होने के कारण मल्लिक समुदाय के साथ-साथ यहां रहने वाले पुरोहित, पंडित एवं होटल समेत अन्य व्यवसाय से जुड़े लोगों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट आ गया है।