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1st Bihar Published by: RITESH HUNNY Updated Sun, 06 Nov 2022 03:37:13 PM IST
SAHARSA : बिहार के गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन 15 दिन की पैरोल पर जेल से बाहर आए हैं। यह अपनी बेटी और बुजुर्ग मां के खराब स्वास्थ्य के कारण पैरोल पर बाहर आए हैं। वहीं, आनंद मोहन के बाहर आने को लेकर जनअधिकार पार्टी (जाप) सुप्रीमों ने बड़ी बात कही है। उन्होंने आनंद मोहन की सजा को गलत ठहराया है।
जन अधिकार पार्टी ने सुप्रीमो और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कहा कि आनंद मोहन को पैरोल मिलना खुशी की बात है। जिस मामले में वह से जेल वर्षों से है उस मामले में उन्हें अब रिहाई मिलनी चाहिए। पप्पू यादव ने कहा कि उन्हें झूठे मामले में सजा मिल रही है। पूर्व सांसद ने कहा कि अब आनंद मोहन को सरकार जल्द रिहा करें ताकि वह भी अपने परिवार के साथ समाज के लोगों के साथ समय व्यतीत कर सकें। उन्होंने कहा कि जहां तक आनंद मोहन परे लगे आरोपों की बात है, तो मुझे लगता है कि किसी घटना में परिस्थितियों को भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए। आनंद मोहन का उद्देश्य हत्या का नहीं रहा होगा। इसलिए परिस्थितियों को समझते हुए आनंद मोहन को पैरोल पर नहीं बल्कि पूर्णतः मुक्त कर देना चाहिए, ताकि वह अपनी ऊर्जा परिवार और समाज की सेवा में लगाएं।
बता दें कि, बिहार के बाहुबली नेताओं में सुमार आनंद मोहन को 15 दिन की पैरोल मिली है। उनकी मां गीता देवी के स्वास्थ्य कारणों और बेटी की सगाई की वजह से 15 दिनों की पैरोल मिली है। वहीं, सहरसा जेल से बाहर आते ही आंनद मोहन का पुराना रंग दिखा। पत्नी लवली आनंद समेत हजारों लोगों ने आनंद मोहन को जेल से रिसीव किया। जेल से बाहर निकलने के बाद आनंद मोहन ने मीडिया से कहा कि शुभ काम से बाहर निकले हैं। सबको आजादी अच्छी लगती है। जितने दिन बाहर रहूंगा समर्थकों और सभी अपील है कि मेरा साथ दें। आनंद मोहन ने कहा कि ये अस्थाई मुक्ति है। इसमें बहुत कुछ बंधा हुआ है।
सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं आनंद मोहन
मालूम हो कि आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं। पंचगछिया में 26 जनवरी 1956 को आनंद मोहन का जन्म हुआ था। उसके दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान हुआ। इसके लिए उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया। इमरजेंसी के दौरान 2 साल जेल में भी रहे। इसके बाद उनकी राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई। बिहार में 80 के दशक में आनंद मोहन सिंह बाहुबली नेता बन चुके थे। उन पर कई मुकदमे भी दर्ज हुए। 1983 में पहली बार तीन महीने के लिए जेल जाना पड़ा। 1990 के विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन जनता दल के टिकट पर महिषी से चुनाव लड़े और कांग्रेस के लहतान चौधरी को 62 हजार से ज्यादा वोट से हराया।
एक समय था आनंद मोहन को लालू यादव के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा था। हालांकि 1994 में आनंद मोहन के दोस्त छोटन शुक्ला की हत्या के बाद सब कुछ बदल गया। छोटन शक्ला के अंतिम संस्कार में आनंद मोहन भी पहुंचे थे। छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा के बीच से एक लालबत्ती की गाड़ी गुजर रही थी, जिसमें उस समय के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया सवार थे। लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मार डाला। जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा। आरोप था कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने उनकी हत्या की। आनंद की पत्नी लवली आनंद का नाम भी आया।
इसके बाद डीएम की हत्या मामले में आनंद मोहन को जेल हुई। 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी। आनंद मोहन देश के पहले पूर्व सांसद और पूर्व विधायक हैं, जिन्हें मौत की सजा मिली। हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई 2012 में पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। बिहार भर में पूर्व सांसद आनंद मोहन के समर्थक भी उनकी रिहाई को लेकर सालों से लगातार आंदोलित रहें हैं। ऐसे में आगे देखना दिलचस्प होगा कि मौजूदा सरकार कबतक पूर्व सांसद आनंद मोहन की सम्मानजनक रिहाई करती है, चुकी परिवार सहित उनके समर्थक वर्षों से रिहाई की आस लगाए बैठें हैं ।