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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 15 Aug 2024 07:43:49 AM IST
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PURNIYA : देश आज यानी 15 अगस्त को आजादी का जश्न मना रहा है लेकिन बिहार के पूर्णिया में 14 अगस्त की आधी रात को ही तिरंगा फहरा दिया है। यह परंपरा 1947 से ही चली आ रही है। वहां मध्यरात्रि को झंडोत्तोलन किया जाता है। अटारी-वाघा बॉर्डर की तरह पूर्णिया में भी आधी रात को आजादी का जश्न मनाया जाता है। पूर्णिया के सहायक थाना क्षेत्र के भट्ठा बाजार झंडा चौक पर 'जन-गण-मन' राष्ट्रगान के बीच भारतीय तिरंगा अपने शौर्य और वैभव की अलख बिखेरता नजर आता है।
जेपी आंदोलन में बतौर छात्र नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले समाजसेवी और वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार दीपक बताते हैं कि देश में वाघा बॉर्डर के बाद पूर्णिया ही एक मात्र ऐसा दूसरा स्थान है, जहां ठीक 12:01 मिनट पर झंडोत्तोलन किया जाता है। वहीं, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बेहद करीब से देखने वाले 89 साल के भोला नाथ आलोक की मानें तो 14 अगस्त की उस अंधेरी रात को महज पंच लाइट की रौशनी में गूंजती इस राष्ट्रगान की आवाज तब समूचे पूर्णिया ने सुनी थी।
पूर्णिया के इस स्वर्णिम इतिहास पर गौर करें तो 14 अगस्त की वह रात कई मायनों में रामेश्वर और उनके पांच अहम दोस्तों के लिए बेहद खास थी। यही वे पांच परवाने थे, जिन्होंने महज पांच की संख्याबल से पूर्णिया के लांखों लोगों के दिलों में आजादी की अलख जगाई थी। एक पत्र लिखकर बापू ने कुछ रोज पहले ही रामेश्वर को इस बात की अप्रत्याशित जानकारी दी थी कि बेहद जल्द हम सबों की मेहनत रंग लाने वाली है। लिहाजा, उसी रात रामेश्वर और उनके पांच अहम साथियों ने यह संकल्प कर लिया था कि जैसे ही रेडियो से आजादी की उदघोषणा की खबर प्रसारित की जाएगी, उसी रोज हम सभी पूर्णिया के इस झंडा चौक से तिरंगा लहराएंगे।
बताया जाता है कि, 14 अगस्त 1947 की रात देश में जैसे ही लार्ड माउंट बेटेन द्वारा भारतीय डेमोनीयन को स्वतंत्र किए जाने की खबर रेडियो प्रसारण के जरिये पूर्णिया के स्वतंत्रता परवानों तक पहुंची, पूर्णिया में असहयोग आंदोलन, दांडी आंदोलन और जेल भरो आंदोलनों जैसे कई अहम आंदोलनों में जिले से बतौर सक्रिय कांग्रेस नेता रामेश्वर प्रसाद सिंह और उनके जैसे अनेकों परवाने आजादी की खुशी में इतने उत्साहित हो गए. बगैर किसी देरी के झंडा चौक पर पहले से रखे कच्चे बांस को उठाया और वह तिरंगा जो अब तक अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई के काम आ रहा था, उस तिरंगे के एक सिरे को बांस से बांधकर ठीक 12:01 मिनट पर रामेश्वर ने तिरंगा फहरा दिया।