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बिहार में वोटर वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार, आधार और राशन कार्ड शामिल करने को कहा

बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने फिलहाल प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन आधार और राशन कार्ड को पहचान के वैध दस्तावेज मानने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 10 Jul 2025 03:11:13 PM IST

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28 जुलाई को अगली सुनवाई - फ़ोटो GOOGLE

DELHI: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR के खिलाफ आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग का पक्ष सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल वोटर वेरिफिकेशन पर रोकर लगाने से इनकार किया है। वही चुनाव आयोग को पहचान पत्र के तौर पर आधार कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करने को कहा है. इस मामले पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। 


बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किए जाने के फैसले पर आज देश की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया की टाइमिंग और उद्देश्य को लेकर कड़े सवाल उठाए और स्पष्ट किया कि मतदाता सूची से जुड़ा कोई भी निर्णय लोकतंत्र के मूल अधिकारों से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसकी निष्पक्षता और पारदर्शिता अनिवार्य है।


बता दें कि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में  10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) है। इनके अलावा कई प्रमुख विपक्षी नेताओं ने भी याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग के इस निर्णय को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया। याचिका दायर करने वालों में मनोज झा (राजद सांसद),महुआ मोइत्रा (टीएमसी सांसद),केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस नेता),सुप्रिया सुले (एनसीपी),डी. राजा (भाकपा),हरिंदर सिंह मलिक (समाजवादी पार्टी),अरविंद सावंत (शिवसेना - उद्धव गुट),सरफराज अहमद (झामुमो),दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले) शामिल हैं। इन सभी नेताओं ने एक सूर में मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण को संदेहास्पद बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की।


न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने आयोग से पूछा कि चुनाव से ऐन पहले ही विशेष गहन पुनरीक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी,जबकि यह काम पहले भी किया जा सकता था। अदालत ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि पुनरीक्षण क्यों किया जा रहा है,बल्कि यह है कि इसे चुनाव के इतने नज़दीक क्यों किया जा रहा है। चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि आयोग को संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत यह जिम्मेदारी दी गई है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदान का अधिकार मिले, इसलिए नागरिकता की जांच ज़रूरी है। उन्होंने आगे कहा कि अगर चुनाव आयोग मतदाता सूची का पुनरीक्षण नहीं करेगा,तो कौन करेगा? उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची को समय-समय पर अद्यतन करना एक नियमित प्रक्रिया है और इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है।


सुनवाई के दौरान यह भी सवाल उठा कि आधार कार्ड और वोटर पहचान पत्र को मतदाता सूची की पुष्टि में मान्य दस्तावेज़ के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन,जो कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए, उन्होंने कहा कि पुनरीक्षण के तहत करीब 7.9 करोड़ नागरिकों को प्रभावित किया जा सकता है और जब नागरिकों के पास वैध आधार या वोटर ID है, तो उनकी नागरिकता पर संदेह करना उचित नहीं।


अदालत ने निर्वाचन आयोग से तीन प्रमुख बिंदुओं पर स्पष्ट जवाब मांगा है: क्या आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का संवैधानिक अधिकार है? इस संशोधन और नागरिकता की पुष्टि के लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाई जा रही है?क्या चुनाव के समय के नज़दीक इस तरह का विशेष पुनरीक्षण करना तर्कसंगत है? गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र या चुनाव आयोग का? अदालत ने इस बात पर भी चिंता जताई कि नागरिकता की जांच का मामला गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि चुनाव आयोग के। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आयोग को किस हद तक नागरिकता की पुष्टि करने का अधिकार है।