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love kush formula : लव-कुश समीकरण टूटने पर बिखर गए थे नीतीश, आधी रात में दिल्ली दरबार में तेज हो गई हलचल, फिर ऐसे सेट हुआ फार्मूला

बिहार मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सबसे बड़ी चर्चा उपमुख्यमंत्री बदलने को लेकर रही, लेकिन अंतिम क्षणों में फैसला उलट गया। लव–कुश फार्मूले और राजनीतिक संतुलन ने पूरा खेल बदल दिया।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 21 Nov 2025 09:45:19 AM IST

love kush formula : लव-कुश समीकरण टूटने पर बिखर गए थे नीतीश, आधी रात में दिल्ली दरबार में तेज हो गई हलचल, फिर ऐसे सेट हुआ फार्मूला

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love kush formula : बिहार में मंगलवार को मुख्यमंत्री के साथ कुल 26 मंत्रियों ने शपथ ली। यह विस्तार सिर्फ सत्ता संतुलन भर नहीं, बल्कि बेहद गहरे जातीय और राजनीतिक संकेतों से भरा रहा। सबसे बड़ी चर्चा इसी बात की रही कि सत्ता गलियारों में जिस तरह उपमुख्यमंत्री बदलने की जोरदार चर्चा थी, आखिर वह आख़िरी वक्त में ठंडी क्यों पड़ गई? अब इस पूरे घटनाक्रम को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है।


दरअसल, भाजपा के एक वरिष्ठ, पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब मार्गदर्शन मंडल में शामिल एक बड़े नेता ने एक महत्त्वपूर्ण जगह पर बताया कि मुख्यमंत्री अपने सबसे भरोसेमंद ‘समीकरण’ यानी लव–कुश फार्मूले को किसी भी सूरत में टूटने नहीं देना चाहते थे। यही वजह है कि पूरा मामला बेहद नाटकीय अंदाज में आगे बढ़ा और अंततः वही चेहरा डिप्टी सीएम बना रहा, जिसका हटना लगभग तय माना जा रहा था।


टिकट से लेकर कैबिनेट वापसी तक: एक नेता की अंदरूनी यात्रा

असल कहानी तब शुरू हुई, जब कैबिनेट में शामिल एक वरिष्ठ नेता के बारे में दिल्ली दरबार में चर्चा की गई। पार्टी नेतृत्व ने यह तय किया कि राज्य परिषद से आने वाले यह नेता अब विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस पर नेता जी की इच्छा थी कि राजधानी की किसी सीट से मैदान में उतरें, ताकि आसानी से सदन पहुंच सकें। लेकिन पार्टी इससे सहमत नहीं थी। उन्हें दूसरी सीट पर भेजने की तैयारी थी।


इसी बीच नेता जी ने खुद एक प्रस्ताव रखा वे गृह सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। नेतृत्व ने साफ कहा कि यह तो सहयोगी दल का हिस्सा है, इसलिए उनकी मंजूरी जरूरी होगी। इसके बाद नेता जी ने आश्वासन दिया—“यह जिम्मेदारी मुझे सौंप दीजिए।” इसके बाद उन्होंने यह बातें सीएम कैंप तक संदेश पहुंचाया। जैसे ही मुख्यमंत्री को सूचना मिली कि यह वरिष्ठ नेता इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, उन्होंने बिना देर किए ‘हाँ’ कर दी। वजह साफ थी—इन नेता जी ने पहले ही ‘लव–कुश फार्मूला’ को मजबूत करने की दिशा में बड़ा योगदान दिया था और सीएम इस गठजोड़ में कोई दरार नहीं आने देना चाहते थे।


चुनावी प्रचार में मिला संकेत

चुनाव आते ही तस्वीर और साफ हुई। इस बार दोनों डिप्टी सीएम चुनाव मैदान में थे। मुख्यमंत्री ने खुद इनमें से एक ‘नंबर दो’ नेता के क्षेत्र में कई सभाएँ कीं, जबकि दूसरे क्षेत्र में वे नहीं गए। वहाँ प्रचार की जिम्मेदारी एक वरिष्ठ संगठन नेता को दी गई। इसके बाद इस अंतर पर कई तरह की चर्चाएँ उठीं, जिनके जवाब संगठन के भीतर ही समझे और समझाए गए। हालाँकि, दूसरी ओर भाजपा के बड़े चेहरों को भी मैदान में उतारा गया और अंतिम चरण तक दोनों नेताओं के क्षेत्र में हाई प्रोफाइल सभाएँ चलीं।


चुनाव परिणाम और डिप्टी सीएम पर मंथन

चुनाव के नतीजे आए—दोनों डिप्टी सीएम जीतकर लौटे। तभी चर्चा तेज हुई कि क्या दोनों को फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा या नए चेहरे लाए जाएंगे? पार्टी के भीतर यह राय बनने लगी कि पुराने चेहरों में से एक को हटाकर किसी वैश्य या महिला नेता को लाया जाए। यह प्रस्ताव सहयोगी दल यानी जेडीयू के पास भेजा गया। पहले तो जेडीयू के रणनीतिकार ने कहा—“यह आपका अधिकार है, हमें कोई आपत्ति नहीं।”लेकिन जब बात मुख्यमंत्री तक पहुंची, तो उन्होंने एक नाम को लेकर नाराजगी दिखाई और पूछा —“ उनको क्यों हटाया जा रहा है? यह उचित नहीं है।”


दोनों चेहरा बदलने का प्रस्ताव, फिर अचानक उलटफेर

बाद में मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में यह सुझाव आया कि दोनों उपमुख्यमंत्री बदले जा सकते हैं। यह प्रस्ताव भाजपा नेतृत्व तक पहुंचा। पहले प्रतिक्रिया सकारात्मक रही—“इस पर विचार करेंगे।”इसी संकेत से जेडीयू को लगा कि बात बन सकती है। लेकिन तभी खेल बदल गया। एक ओर से संदेश आया कि “लव–कुश समीकरण किसी भी हाल में नहीं टूटेगा।”दूसरी ओर दिल्ली से संदेश मिला कि “पुराने चेहरों में से एक रखना जरूरी है, दूसरा बदला जा सकता है। ऐसे में सीट को लेकर नए फेस में वैश्य वर्ग पर खास झुकाव है।” लेकिन दोनों तरफ की शर्तें मिल नहीं पा रही थीं। इसके बाद इसको लेकर दिल्ली दरबार में चर्चा शुरू की गई और इसके बाद दो ख़ास लोगों को स्पेशल प्लेन से दिल्ली बुलाया गया। 


दिल्ली वार्ता और प्रधानमंत्री की अंतिम सलाह

अब दिल्ली में बैठक हुई। बैठक में लंबी चर्चा चली, पर बिहार के मुख्यमंत्री अपने फार्मूले से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। आख़िरकार भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने बीच का रास्ता सुझाया। प्रधानमंत्री की ओर से यह सलाह सामने आई कि—“इस बार नीतीश जी की बात मान ली जाए। कैबिनेट में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर संतुलन बनाया जाएगा।”


अंतिम फैसला: पुराने चेहरों की वापसी

इसके बाद बिहार भाजपा विधायक दल की बैठक बुलाई गई। औपचारिक प्रस्तावों के बाद दोनों पुराने चेहरों के नाम पर सहमति बन गई। और अंततः मंगलवार को वही दोनों नेता फिर से उपमुख्यमंत्री बने, जिनके बदलने की चर्चा महीनों से होती रही थी।यह पूरा घटनाक्रम केवल पदों की अदला–बदली का नहीं था। इसमें बिहार की सियासत के सबसे मजबूत सामाजिक समीकरण—लव–कुश फार्मूला, सहयोगी दलों के बीच भरोसा, और दिल्ली–पटना के बीच होता शक्ति संतुलन—सब कुछ गहराई से जुड़ा था। अंततः मुख्यमंत्री ने अपनी शर्तें मनवा लीं, और भाजपा ने गठबंधन समन्वय को प्राथमिकता देते हुए इस फार्मूले को बरकरार रखा। और सत्ता गलियारों में चली सप्ताह भर की सुगबुगाहट एक झटके में थम गई।