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Bihar politics : उपेंद्र कुशवाहा ने बताई बेटे को मंत्री बनाने की वजह, कहा—‘परिवार से लोग रहेंगे तो टूटने का खतरा कम होता है’

राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाए जाने की वजह बताई। कहा—पार्टी बार-बार टूट चुकी है, इसलिए परिवार से किसी को पद देना मजबूरी और रणनीति दोनों है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 21 Nov 2025 08:50:27 AM IST

Bihar politics : उपेंद्र कुशवाहा ने बताई बेटे को मंत्री बनाने की वजह, कहा—‘परिवार से लोग रहेंगे तो टूटने का खतरा कम होता है’

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Bihar politics : राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने पहली बार खुलकर यह स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने बेटे दीपक प्रकाश को बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री पद देने के पीछे राजनीतिक मजबूरी भी देखी है। उनका कहना है कि परिवार का कोई सदस्य महत्वपूर्ण पद पर रहता है, तो पार्टी टूटने या नेताओं के बिखरने का खतरा काफी कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में उनकी पार्टी कई बार टूट चुकी है और इसका नुकसान संगठन को भारी तरीके से उठाना पड़ा है। यही वजह है कि उन्होंने इस बार अपने बेटे को मंत्री बनाने का निर्णय लिया।


कुशवाहा ने बताया कि दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने के पीछे एक कारण उनकी क्षमता और योग्यता भी है। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा कारण राजनीतिक परिस्थितियां और पार्टी के भीतर टूट-फूट को रोकना है। उन्होंने कहा कि इससे पहले दो बार सांसद और विधायक उनके दल को छोड़कर जा चुके हैं। ऐसे में पार्टी को दोबारा खड़ा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है और यह स्थिति किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होती है।


 उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा, “जब परिवार के लोग पद पर आते हैं, तो उनके कहीं और जाने का खतरा नहीं रहता। पार्टी फिर से कमजोर न हो, इसलिए यह कदम उठाया है।”


पार्टी में बार-बार टूट से परेशान रहे कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा ने पुराने अनुभवों को याद करते हुए बताया कि 2014 में रालोसपा के तीन सांसद जीते थे, जिनमें से दो बाद में पार्टी छोड़कर चले गए। 2015 के विधानसभा चुनावों में दो विधायक चुने गए थे, लेकिन वे भी बाद में अलग होकर जदयू में शामिल हो गए। कुशवाहा ने कहा कि यह स्थिति केवल उनकी पार्टी में नहीं होती, बल्कि कई छोटी पार्टियां ऐसी दिक्कतों से गुजरती हैं। इसलिए उन्होंने परिवार से किसी को मंत्री बनाकर एक सुरक्षित रास्ता अपनाया है।


आरएलएम के कोटे से जो मंत्री बनाए गए हैं, वो दीपक प्रकाश वर्तमान में न तो विधायक हैं और न ही विधान परिषद के सदस्य। माना जा रहा है कि जल्द ही उन्हें विधान परिषद भेजा जाएगा। सूत्रों का कहना है कि एनडीए में सीट बंटवारे के दौरान भाजपा ने उपेंद्र कुशवाहा से एक एमएलसी सीट का वादा किया था, जिस पर अब अमल होने की संभावना है।


विधानसभा में चार विधायक होने के बावजूद बेटे को मौका

विधानसभा चुनाव 2025 में आरएलएम ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें चार सीटों पर पार्टी को जीत मिली। इन चार विधायकों में कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता भी शामिल हैं। इसके बावजूद उन्होंने विधायकों को मंत्री पद देने के बजाय अपने बेटे को चुना। इस पर कुशवाहा का तर्क है कि पार्टी को मजबूती देने के लिए यह फैसला जरूरी था। उन्होंने कहा कि विधायक तो कभी भी दूसरी पार्टियों में शामिल हो जाते हैं, लेकिन परिवार का सदस्य ऐसा नहीं करता।


दीपक प्रकाश ने कहा—‘जो जिम्मेदारी मिली है, उसे निभाऊंगा’

गुरुवार को पटना के गांधी मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और 25 अन्य मंत्रियों के साथ दीपक प्रकाश ने भी शपथ ली। शपथ लेने के बाद मीडिया से बातचीत में दीपक ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में काम करने का मौका मिला है, जो उनके लिए गौरव की बात है। मंत्री बनने का फैसला अचानक हुआ और इस जिम्मेदारी को वे पूरी ईमानदारी से निभाएंगे।


जींस और टी-शर्ट पहनकर शपथ लेने पर उठे सवालों के जवाब में दीपक ने कहा, “कपड़े ऐसे पहनने चाहिए जिसमें व्यक्ति कंफर्टेबल महसूस करे। मैं जैसे सहज रहता हूं, वैसे ही आया।” उनका यह बयान सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में रहा।


बिहार के विकास में नई पीढ़ी की भूमिका पर जोर

उपेंद्र कुशवाहा ने नए मंत्रियों को लेकर कहा कि बिहार के विकास के लिए ऊर्जा से भरे नए चेहरों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी जोश के साथ काम करती है और पुराने नेताओं का अनुभव उन्हें सही दिशा देता है। दोनों का मेल ही बिहार को आगे ले जा सकता है। कुशवाहा ने कहा कि वे बिहार के भविष्य को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि एनडीए सरकार में स्थिरता है और यह बिहार में विकास की नई रफ्तार देगा।


रालोसपा से शुरू हुआ सफर आज आरएलएम तक

उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक कहानी भी पार्टी टूटने की घटनाओं से भरी रही है। 2014 में रालोसपा ने शानदार प्रदर्शन किया था और तीन सांसद जीते थे। लेकिन बाद में अरुण कुमार और राम कुमार शर्मा अलग होकर अपनी पार्टियां बना लीं। 2015 में जीते दो विधायक भी पार्टी छोड़कर जदयू में चले गए थे। यह सब देखकर कुशवाहा को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा। आरएलएम का गठन हुआ और अब एनडीए में रहते हुए वे फिर से अपना राजनीतिक आधार मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।