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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 20 Sep 2025 10:04:38 AM IST
Patna High Court - फ़ोटो FILE PHOTO
Patna High Court : बिहार में लंबे समय से यह देखा जाता रहा है कि कॉलेज और विश्वविद्यालयों में कई छात्र नियमित कक्षाओं में भाग नहीं लेते। उनकी उपस्थिति न्यूनतम निर्धारित सीमा से काफी कम होती है। इसके बावजूद वे किसी न किसी तरीके से जुगाड़ कर परीक्षा फॉर्म भर लेते हैं और बिना कॉलेज आए एग्जाम तक दे डालते हैं। कई बार ऐसे छात्र अच्छे अंकों से पास भी हो जाते हैं। इससे उन छात्रों के साथ अन्याय होता है जो नियमों का पालन करते हुए नियमित रूप से कक्षाओं में उपस्थित रहते हैं।
अब ऐसे मामलों को लेकर पटना हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि 75 प्रतिशत से कम उपस्थिति वाले छात्रों को किसी भी परिस्थिति में परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह फैसला छात्रों, अभिभावकों और शैक्षणिक संस्थानों सभी के लिए एक बड़ा संदेश है।
मामला कैसे पहुंचा अदालत तक?
दरअसल, यह मामला तब सामने आया जब बेगूसराय स्थित राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर इंजीनियरिंग कॉलेज के बी.टेक (कंप्यूटर साइंस) सत्र 2021-25 के छात्र शुभम कुमार और दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के बी.टेक (सिविल) सत्र 2022-26 के छात्र शशिकेश कुमार ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की। दोनों छात्रों का कहना था कि उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।
लेकिन जब अदालत ने रिकॉर्ड खंगाला तो पाया कि दोनों छात्रों की उपस्थिति 50 प्रतिशत से भी कम है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कई बार नोटिस भेजा और अवसर दिया, फिर भी ये छात्र न्यूनतम उपस्थिति पूरी करने में विफल रहे। ऐसे में अदालत ने उनकी याचिकाओं को खारिज करते हुए साफ कहा कि नियमों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
छात्रों की दलीलें और अदालत का रुख
याचिकाकर्ताओं ने यह दलील भी दी कि अन्य कई छात्रों की उपस्थिति भी कम है, फिर भी उन्हें परीक्षा में बैठने दिया गया। उन्होंने अदालत से समानता का अधिकार लागू करने की मांग की। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस संबंध में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
छात्रों ने यह भी कहा कि उन्होंने फीस जमा कर दी है और नामांकन कराया है, इसलिए उन्हें परीक्षा में बैठने से रोका नहीं जाना चाहिए। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि फीस जमा करना या नामांकन लेना, परीक्षा में बैठने का कोई स्वतःसिद्ध अधिकार नहीं देता। उपस्थिति की शर्त वैधानिक और बाध्यकारी है, इसमें किसी भी अधिकारी या संस्था को छूट देने का अधिकार नहीं है।
पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला
खंडपीठ, जिसमें कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश पी.बी. बजनथ्री और न्यायाधीश आलोक कुमार सिन्हा शामिल थे, ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों का भी हवाला दिया। अदालत ने कहा कि उपस्थिति की न्यूनतम शर्त को केवल सहानुभूति या दया के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है, लेकिन यह "नकारात्मक समानता" की अनुमति नहीं देता। यानी अगर किसी और छात्र को गलत तरीके से परीक्षा देने दी गई है तो इसका मतलब यह नहीं कि बाकी छात्रों को भी वही छूट मिल जाएगी।
चिकित्सकीय आधार पर भी राहत नहीं
इस मामले में छात्र शशिकेश कुमार ने यह तर्क दिया कि वह पीलिया से पीड़ित था और उपचार के कारण नियमित कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो सका। इसके समर्थन में उसने चिकित्सकीय दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। हालांकि अदालत ने यह मानते हुए कि बीमारी गंभीर हो सकती है, कहा कि फिर भी यह कारण न्यूनतम उपस्थिति की अनिवार्यता को दरकिनार करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
पटना हाईकोर्ट का यह निर्णय शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन और पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में बेहद अहम माना जा रहा है। लंबे समय से यह शिकायत उठती रही है कि छात्र बिना पढ़ाई किए केवल परीक्षा देकर डिग्री हासिल कर लेते हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
इस फैसले के बाद अब छात्रों को यह समझना होगा कि कॉलेज या विश्वविद्यालय में नियमित उपस्थिति केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह उनकी शैक्षणिक जिम्मेदारी है। दूसरी ओर, शैक्षणिक संस्थानों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे उपस्थिति नियमों का कड़ाई से पालन कराएं और किसी तरह की ढिलाई न बरतें।
आपको बताते चलें कि, पटना हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह साफ संकेत है कि अब डिग्री हासिल करने के लिए "जुगाड़" नहीं चलेगा। पढ़ाई करने वाले और मेहनती छात्रों के साथ न्याय तभी होगा जब उपस्थिति और शिक्षा से जुड़े सभी नियमों का पालन किया जाएगा।