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21-Nov-2025 10:24 AM
By First Bihar
Bihar Politcis: बिहार की राजनीति में 20 नवंबर 2025 का दिन ऐतिहासिक रहा जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस शपथ ग्रहण समारोह में उनके साथ 26 अन्य मंत्रियों ने भी पद और गोपनीयता की शपथ ली। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश ने। यह इसलिए क्योंकि दीपक प्रकाश फिलहाल किसी भी विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं हैं, फिर भी उन्हें मंत्री बनाया गया। इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में परिवारवाद और वंशवाद पर बहस को हवा दे दी है।
दीपक प्रकाश के मंत्री बनाए जाने पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। आरजेडी ने वंशवाद वाले मंत्रियों की सूची जारी की जिसमें 10 नाम शामिल हैं। इसमें उपेंद्र कुशवाहा, दिग्विजय सिंह, जीतन राम मांझी, शकुनी चौधरी और कैप्टन जय नारायण निषाद जैसे नेता शामिल हैं। विपक्ष का आरोप है कि राज्य में राजनीतिक पदों पर परिवारवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस संदर्भ में जब दीपक प्रकाश से सवाल किया गया कि उन्हें मंत्री क्यों बनाया गया, तो उन्होंने कहा, "मुझे यह पता शपथ ग्रहण से थोड़े समय पहले ही चला। असल में इस बारे में पापा ही बता पाएंगे।"
दीपक प्रकाश फिलहाल किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। नियम के अनुसार उन्हें छह महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य बनना होगा, अन्यथा उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी को दूर करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर कई दौर की बैठकें हुई थीं, और कई नेताओं की नाराजगी सोशल मीडिया और राजनीतिक चर्चाओं में सामने आई थी। कुशवाहा खेमे की नाराजगी को देखते हुए यह कदम उनकी नाराजगी को शांत करने और गठबंधन में संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया गया माना जा रहा है।
इस मुद्दे पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि बिहार की राजनीति में कई अन्य युवा और अप्रत्यक्ष नेताओं को भी मंत्री पद की संभावना दी गई है। आरजेडी ने वंशवाद वाले मंत्रियों की लिस्ट में ऐसे कई नाम शामिल किए हैं जिनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि परिवार आधारित है। उदाहरण के लिए, पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पुत्री श्रेयसी सिंह, पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी आदि। इस तरह के नाम इस बात का प्रमाण हैं कि बिहार की राजनीति में वंशवाद और राजनीतिक विरासत का असर अभी भी बना हुआ है।
दीपक प्रकाश की राजनीतिक पृष्ठभूमि मजबूत मानी जाती है। वे आरएमएल प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बेटे हैं और हाल ही में विदेश से पढ़ाई करके बिहार लौटे हैं। उनका जन्म 1989 में हुआ और उन्होंने सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय से 2011 में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। 2019 से वे सक्रिय राजनीति में हैं और अपने माता-पिता के साथ पार्टी कार्यों में लगे हुए हैं। उनकी मां, स्नेहलता कुशवाहा, हाल ही में सासाराम विधानसभा सीट से विधायक चुनी गई हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दीपक प्रकाश की कैबिनेट में शामिल होना भाजपा-एनडीए गठबंधन की रणनीतिक चाल हो सकती है। इससे न केवल कुशवाहा खेमे की नाराजगी कम होगी, बल्कि भविष्य में उन्हें एमएलसी बनाने की संभावना भी बढ़ जाएगी। साथ ही, यह कदम युवा और नए नेताओं को अवसर देने की दिशा में भी एक संकेत है। दीपक प्रकाश युवा नेतृत्व का प्रतीक हैं और उन्हें पार्टी के लिए भविष्य का चेहरा माना जा रहा है।
दीपक प्रकाश के मंत्री बनने के फैसले ने बिहार की राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद पर नई बहस शुरू कर दी है। विरोधी दलों का आरोप है कि इस तरह के फैसले लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े करते हैं। वहीं समर्थक इसे राजनीतिक संतुलन और गठबंधन प्रबंधन की रणनीति मान रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भाजपा और एनडीए गठबंधन अपने गठबंधन सहयोगियों के संतुलन और उनकी नाराजगी को दूर करने में सक्षम हैं।
शपथ ग्रहण के दिन पटना के गांधी मैदान में भारी जनसमूह और राजनीतिक हलचल रही। समारोह के दौरान यह सवाल उठ रहा था कि दीपक प्रकाश जैसे युवा और अप्रत्यक्ष सदस्य को मंत्री बनाना राजनीतिक दृष्टिकोण से कितना सही है। हालांकि, यह कदम पार्टी के युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने और आगामी विधानसभा और स्थानीय चुनावों के लिए रणनीतिक तैयारी भी माना जा रहा है।
आर्थिक और शैक्षिक रूप से भी दीपक प्रकाश मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैं। विदेश से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर वे राज्य में लौटे और परिवार की राजनीतिक विरासत के साथ अपने कदम आगे बढ़ाए। उनके मंत्री बनने से राज्य में युवा और शिक्षित नेताओं की भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है।
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की 10वीं पारी और दीपक प्रकाश की कैबिनेट में शामिल होना यह संकेत देता है कि राज्य में नई पीढ़ी के युवा और योग्य नेताओं को तेजी से मौका दिया जा रहा है। यह मामला भविष्य में बिहार की राजनीति में युवा नेताओं और परिवारवाद के मुद्दों पर बहस को और अधिक उभार सकता है।