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05-Apr-2024 07:03 PM
By First Bihar
PATNA: लोकसभा चुनाव के सियासी बवंडर ने बिहार के कई राजनीतिक घरानों की नींव हिलाकर रख दी है। ये राजनीतिक कोई आम नहीं हैं। पिछले कई दशकों से बिहार की राजनीति में इन सियासी घरानों का न केवल राजनीतिक दबदवा रहा है बल्कि इनमे कई ऐसे घराने भी हैं जिन्होंने समय-समय पर अपनी सुविधा और सत्ता के लिए अपने राजनीतिक प्रतिबद्धताएं भी लिबास की तरह बदलते रहने का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन आज इन घरानों का हाल यह है कि पद और सत्ता की कुर्सी के लिए किसी अखाड़े में बाप-बेटा आमने-सामने है तो कहीं चाचा-भतीजा तो कहीं बाप और बेटी। इनमें कई ऐसे उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं जिनके लिए उनके पिता, भाई और अन्य परिजनों को चुनाव प्रचार करने में आम मतदाताओं के तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता है।
रामविलास पासवान घराना
शुरुआत करते है स्व. रामविलास पासवान के घराने से। जबतक स्व. रामविलास पासवान जीवित थे तबतक उनका राजनीतिक घराना लगातार फलता-फूलता रहा। सियासत के अखाड़े में रामविलास पासवान ने जो मुकाम हासिल किया था, उसका लाभ उनके दोनों छोटे भाइयों पूर्व सांसद स्व. रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस ने उठाया। रामचंद्र पासवान समस्तीपुर (सु) लोकसभा और रोसड़ा (सु) सीट का कई बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। जबकि उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी की कमान अपने हाथों में लिए रखा। पशुपति पारस को गठबंधन की राजनीति में इसका कई बार सीधा लाभ भी हुआ और नीतीश मंत्रिमंडल में कई बार मंत्री भी बने। उधर, रामचंद्र पासवान के निधन के बाद पिछले लकोसभा चुनाव में उनके पुत्र प्रिंस राज को समस्तीपुर (सु) लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद भेजा गया। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद बिहार का यह राजनीतिक घराना बिखरने की कगार पर है। आज स्थिति यह है कि रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को हाशिए पर धकेल दिया है। हाजीपुर (सु) क्षेत्र से चिराग ने न केवल अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को ठिकाने लगा दिया बल्कि इस प्रतिष्ठित सीट से खुद चुनाव मैदान में उतरने का एलान भी कर दिया है। साथ ही अपने चचेरे भाई व समस्तीपुर (सु) लोकसभा क्षेत्र से निवर्तमान सांसद प्रिंस राज को भी बेटिकट कर दिया है। आज चाचा पशुपति पारस और प्रिंस राज दोनों अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं।
रामसेवक हजारी घराना
वैसे तो समाजवादी नेता व कई बार सांसद और विधायक रह चुके रामसेवक हजारी का परिवार नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के साथ रहा है। रामसेवक हजारी के पुत्र महेश्वर हजारी फिलहाल बिहार सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री हैं। लेकिन उनके बेटे सन्नी हजारी ने शुक्रवार को कांग्रेस में शामिल होने सक एलान कर दिया है। बताया जाता है कि सन्नी हजारी समस्तीपुर (सु) लकोसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव के अखाड़े में उतरने वाले हैं। भले ही यह सत्तारूढ़ जदयू के अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न करने वाला हो लेकिन समस्तीपुर के मतदाताओं के साथ-साथ खुद महेश्वर हजारी के लिए यह परीक्षा की घडी है कि वह अपने बेटे के लिए समस्तीपुर के मतदाताओं से वोट का जुगाड़ कैसे करेंगे।
महावीर चौधरी का घराना
स्व. महावीर चौधरी की गिनती बिहार के बड़े कांग्रेसी नेताओं में होती है। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर कई बार लोकसभा सक चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। बाद में उनके पुत्र अशोक चौधरी भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे। लेकिन अशोक चौधरी ने बाद में कांग्रेस छोड़कर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का दामन थाम लिया। अशोक चौधरी फ़िलहाल नीतीश कैबिनेट में ग्रामीण कार्य मंत्री है। लेकिन उनकी नवविवाहिता पुत्री शाम्भवी चौधरी एनडीए के प्रमुख घटक दल चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर समस्तीपुर (सु) लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। समस्तीपुर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के दो कद्दावर मंत्रियों महेश्वर हजारी और अशोक चौधरी के बेटे और बेटी के बीच सीधी लड़ाई का अखाडा बनने वाला है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि महेश्वर हजारी और अशोक चौधरी अपने-अपने बच्चों के लिए समस्तीपुर में किस तरह की फील्डिंग सजाते हैं।
नरेंद्र सिंह का घराना
नरेंद्र सिंह की पहचान बिहार में एक जुझारू समाजवादी नेता की रही है। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उनके घर्स्ल आँगन में भी राजनीति की दीवार खड़ी होती दिखाई देने लगी है। नरेंद्र सिंह के एक पुत्र सुमित कुमार सिंह निर्दलीय विधायक चुनकर नीतीश कैबिनेट में मंत्री हैं। जबकि नरेंद्र सिंह के बड़े बेटे अजय प्रताप वर्ष 2009 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक रह चुके हैं। लेकिन अजय प्रताप ने भी भाजपा छोड़कर राजद में शामिल होने का एलान कर दिया है। ऐसे में एक भाई जहां एनडीए की जीत सुनिश्चित करने का सपना देख रहा है तो दूसरा भाई राजद का झंडा बुलंद करने का फैसला ले लिया है।