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06-Oct-2025 02:40 PM
By First Bihar
India Currency Printing: भारत में अक्सर यह सवाल उठता है कि जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास नोट छापने की सुविधा है और देश में 10, 20, 50, 100 और 500 रुपये के नोट प्रचलित हैं, तो क्या सरकार जितना चाहे उतना पैसा छापकर सभी नागरिकों में बाँट सकती है और इस तरह गरीबी और बेरोजगारी को समाप्त किया जा सकता है। superficially यह विचार आकर्षक लगता है, लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है।
दरअसल, नोट छपना केवल मुद्रा की आपूर्ति को बढ़ाता है, यह देश की वास्तविक संपत्ति या उत्पादन नहीं बढ़ाता। किसी भी अर्थव्यवस्था में नोट केवल लेन-देन का माध्यम होते हैं, असली मूल्य तो वस्तुएं, सेवाएं और उत्पादन होते हैं। यदि सरकार अत्यधिक मात्रा में नोट छापकर बांट दे, तो बाजार में पैसा तो बढ़ जाएगा, लेकिन वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा उतनी नहीं बढ़ेगी। इसका सीधा परिणाम महंगाई (Inflation) में उछाल होगा। उदाहरण के लिए, यदि सभी नागरिकों को नकद दिए जाएँ, तो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, लेकिन बाजार में समान वस्तुएँ उतनी ही होंगी, जिससे कीमतें तेजी से बढ़ जाएँगी।
इसके अलावा, बेरोजगारी केवल पैसा बांटने से नहीं खत्म होती। रोजगार सृजन के लिए उत्पादन, निवेश, उद्योग, कृषि और सेवा क्षेत्र में वृद्धि आवश्यक है। जब तक अर्थव्यवस्था में वास्तविक उत्पाद और नौकरियां नहीं बढ़तीं, तब तक केवल नोटों का वितरण लोगों की आमदनी बढ़ाने में असफल रहेगा। अत्यधिक नोट छपाई से देश की मुद्रा की स्थिरता भी प्रभावित हो सकती है। मुद्रा की कीमत गिर सकती है, विदेशी निवेश घट सकता है, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसलिए विश्वसनीय आर्थिक नीतियों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
असली आर्थिक विकास के लिए सरकार और RBI निवेश, शिक्षा, कौशल विकास, नवाचार और उद्योगिक सुधार पर ध्यान देते हैं। रोजगार सृजन और गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि सुधार, स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहन, और बुनियादी ढाँचे में निवेश जरूरी है। नोट केवल एक माध्यम है, वास्तविक संपत्ति नहीं। देश को समृद्ध बनाने के लिए उत्पादन बढ़ाना, संसाधनों का सही उपयोग करना और आर्थिक गतिविधियों को मजबूत करना जरूरी है। यही कारण है कि भारत में नोट छपने की सुविधा होने के बावजूद सिर्फ नकद वितरण से अमीरी और बेरोजगारी की समस्या हल नहीं हो सकती।