फुहा फुटबॉल टूर्नामेंट: आरा एरोज ने बेरथ को ट्राईब्रेकर में हराया, समाजसेवी अजय सिंह ने दी बधाई Katihar News: बिहार बंद के समर्थन में एनडीए कार्यकर्ताओं ने निकाला मशाल जुलूस, पीएम मोदी की मां पर अभद्र टिप्पणी का विरोध Katihar News: बिहार बंद के समर्थन में एनडीए कार्यकर्ताओं ने निकाला मशाल जुलूस, पीएम मोदी की मां पर अभद्र टिप्पणी का विरोध Patna Crime News: पटना में रेलवे स्टेशन से युवती को किडनैप कर गैंगरेप, सोनू सन्नाटा समेत दो आरोपी गिरफ्तार Patna Crime News: पटना में रेलवे स्टेशन से युवती को किडनैप कर गैंगरेप, सोनू सन्नाटा समेत दो आरोपी गिरफ्तार दिल्ली में 4 सितंबर को हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का राष्ट्रीय अधिवेशन, मांझी और संतोष सुमन रहेंगे शामिल Purnea News: स्वाभिमान सभा में भाजपा जिला मंत्री नूतन गुप्ता हुईं शामिल, PM मोदी की रैली के लिए लोगों को दिया निमंत्रण Purnea News: स्वाभिमान सभा में भाजपा जिला मंत्री नूतन गुप्ता हुईं शामिल, PM मोदी की रैली के लिए लोगों को दिया निमंत्रण Bihar News: बिहार में करमा पूजा के दौरान बड़ा हादसा, आहर में डूबने से दो सगी बहन समेत चार की मौत Bihar News: बिहार में चुनावी जंग से पहले सत्ताधारी दल की प्रवक्ता ब्रिगेड बिखरी...रोज-रोज पार्टी की पिट रही भद्द, निशाने पर राष्ट्रीय प्रवक्ता
01-Sep-2025 03:26 PM
By First Bihar
Bihar Teacher News: बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में हजारों प्रधान शिक्षकों की नियुक्ति के बाद भी राज्य भर में 9,257 पद अब भी खाली रह गए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, नियुक्त शिक्षकों का योगदान न देना। अधिकतर मामलों में शिक्षकों ने लंबी दूरी की पोस्टिंग और कम वेतनमान का हवाला देते हुए योगदान से इनकार कर दिया है।
मुजफ्फरपुर जिले की स्थिति को देखें तो 1,551 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र जारी किए गए, लेकिन इनमें से 220 प्रधान शिक्षकों ने योगदान नहीं दिया। ऐसे ही हालात बिहार के अन्य जिलों में भी देखने को मिल रहे हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था पर सीधा असर पड़ रहा है।
राज्य स्तर पर जिन 9,257 पदों पर नियुक्तियां अपेक्षित थीं, उनमें से बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने योगदान नहीं किया। इनमें शामिल हैं-
सामान्य श्रेणी के खाली पद- 3,228,
दिव्यांग कोटा के खाली पद- 998
स्वतंत्रता सेनानी आश्रित कोटे के खाली पद- 680
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में योग्य उम्मीदवार नियुक्ति के बावजूद कार्यभार संभालने नहीं पहुंचे।
जिलावार खाली पदों की स्थिति
जिला- प्रधान शिक्षक के खाली पद- सामान्य श्रेणी के खाली पद
पश्चिम चंपारण - 679- 284
पूर्वी चंपारण- 334- 136
मुजफ्फरपुर- 220- 39
सीतामढ़ी- 131- 52
वैशाली -131- 34
शिवहर- 22-12
यह आंकड़े यह संकेत देते हैं कि उत्तर बिहार के जिलों में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। नियुक्त प्रधान शिक्षकों का कहना है कि उन्हें अपने गृह ज़िले से सैकड़ों किलोमीटर दूर पोस्टिंग दी गई है, जहां सड़क, संचार और आवास की सुविधा तक नहीं है। साथ ही, जो वेतनमान निर्धारित किया गया है, वह काम की जिम्मेदारी के अनुपात में बेहद कम है।
एक प्रधान शिक्षक का कार्य सिर्फ पढ़ाना नहीं होता, बल्कि पूरे स्कूल के प्रशासनिक और शैक्षणिक संचालन का भार उसी पर होता है। उनके स्कूल के दैनिक कार्यों का संचालन, सुरक्षित व समावेशी वातावरण सुनिश्चित करना, शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए रणनीतियां बनाना, शिक्षकों को मार्गदर्शन और प्रेरणा देना, विद्यार्थियों की सुरक्षा व विकास सुनिश्चित करना, अभिभावकों से संवाद बनाए रखना और अनुशासन और अभिलेख प्रबंधन की देखरेख करना का प्रमुख दायित्व निर्धारित किया गया है। इन कार्यों की जिम्मेदारी के बावजूद, वेतन और संसाधन अपर्याप्त हैं, जिससे शिक्षकों का मनोबल गिर रहा है।
इन नियुक्तियों की प्रक्रिया बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के माध्यम से पूरी की गई थी। सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और प्राथमिक स्कूलों को सुदृढ़ करने के लिए प्रधान शिक्षक पद सृजित किए थे। मगर जिन उद्देश्यों से ये नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई थी, वे नियोजन की खामियों के चलते अधूरे रह जा रहे हैं।
इस प्रक्रिया से स्कूलों में प्रधान शिक्षक के नहीं होने से, प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर हो गया है। शिक्षण कार्य में अस्थिरता आ गई है। छात्रों की उपस्थिति और प्रदर्शन पर भी असर पड़ा है। सरकारी योजनाओं का संचालन प्रभावित हो रहा है। स्थानीय ज़िलों में पोस्टिंग की व्यवस्था की जाए। प्रधान शिक्षकों का वेतनमान पुनः निर्धारित किया जाए। इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। नियुक्त शिक्षकों से संपर्क कर फीडबैक लिया जाए और समाधान निकाला जाए।
बिहार सरकार ने शिक्षा में सुधार के उद्देश्य से जो पहल की थी, वह जमीनी हकीकत से टकरा गई है। प्रधान शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण पदों के खाली रहने से न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता पर असर पड़ा है, बल्कि नीतिगत योजना पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। अगर राज्य सरकार समय रहते स्थानीयकरण, बेहतर वेतन, और सुविधाएं सुनिश्चित नहीं करती, तो यह संकट और गहरा हो सकता है।