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02-Oct-2025 08:13 AM
By First Bihar
Pawan Singh : बिहार विधानसभा चुनाव के पहले सियासी गलियारों में भोजपुरी स्टार और पॉपुलर गायक पवन सिंह की बीजेपी में वापसी को लेकर चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। मंगलवार, 30 सितंबर 2025 को पवन सिंह ने दिल्ली में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की। इसके अलावा उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि पवन सिंह अगर चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी किस सीट से उन्हें टिकट दे सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पवन सिंह के लिए आरा और बड़हरा विधानसभा सीटें सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकती हैं। इसके पीछे राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों का महत्वपूर्ण योगदान है। पवन सिंह मूल रूप से भोजपुर जिले के जोकहरी गांव के रहने वाले हैं। उनका पैतृक घर बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में आता है, जबकि उनके पास आरा टाउन में भी एक घर है। पवन सिंह राजपूत जाति से आते हैं, और इन दोनों सीटों पर राजपूत वोटरों की अच्छी संख्या मौजूद है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आरा विधानसभा सीट पर राजपूत और यादव वोटरों की संख्या अधिक है। कोइरी जाति के वोटरों की भूमिका भी निर्णायक है, और पवन सिंह की उपस्थिति से यह वोट बिखरने की संभावना कम होती दिखती है। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 10 प्रतिशत से अधिक है। इतिहास बताता है कि आरा सीट पर बीजेपी का लंबे समय से प्रभुत्व रहा है। 2000 से 2010 तक बीजेपी के अमरेंद्र प्रताप सिंह विधायक रहे। 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के मोहम्मद नवाज आलम ने केवल 666 वोटों के अंतर से अमरेंद्र प्रताप सिंह को हराया। हालांकि, 2020 में जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन के चलते अमरेंद्र प्रताप सिंह फिर से विधायक बने। अब उनकी उम्र अधिक हो चुकी है, ऐसे में माना जा रहा है कि पवन सिंह को आरा से बीजेपी का टिकट मिल सकता है।
दूसरी ओर बड़हरा विधानसभा सीट की भी चर्चा है। इस सीट पर अभी बीजेपी का कब्जा है और राघवेंद्र प्रताप सिंह वर्तमान विधायक हैं। बड़हरा में मुख्य रूप से राजपूत, यादव और कोइरी जाति के वोटरों की भूमिका अहम मानी जाती है। राघवेंद्र प्रताप सिंह छह बार इस सीट से विधायक रह चुके हैं। उनका राजनीतिक सफर भी लंबा और विविध रहा है। 1985 में वे जनता पार्टी के टिकट पर जीते, 1990 और 1995 में जनता दल के उम्मीदवार रहे, 2000 में आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की। 2005 में जेडीयू की आशा देवी और 2010 में आरजेडी से राघवेंद्र प्रताप सिंह जीते, जबकि 2015 में सरोज यादव ने आरजेडी के टिकट पर बड़हरा सीट जीती। 2020 में राघवेंद्र प्रताप सिंह बीजेपी में शामिल होकर फिर से जीत दर्ज की। उनकी उम्र अब अधिक हो चुकी है, इसलिए पार्टी उन्हें बड़हरा से भी चुनाव मैदान में उतार सकती है।
विश्लेषकों के अनुसार, पवन सिंह की लोकप्रियता और उनकी सामाजिक स्वीकार्यता दोनों सीटों पर उन्हें मजबूत उम्मीदवार बनाती है। आरा और बड़हरा में राजपूत, यादव और कोइरी जाति के वोटरों का समीकरण पवन सिंह के पक्ष में दिखाई देता है। इसके अलावा पवन सिंह की भोजपुरी फिल्म और संगीत इंडस्ट्री में लोकप्रियता उन्हें युवाओं और आम जनता के बीच अलग पहचान देती है, जो चुनावी मोर्चे पर निर्णायक साबित हो सकती है।
सियासत की दृष्टि से देखें तो पवन सिंह का बीजेपी में स्वागत और उनके टिकट की संभावना पार्टी के लिए भी महत्वपूर्ण है। उनकी मौजूदगी न केवल वोट बैंक को मजबूत करेगी, बल्कि अन्य दलों के मुकाबले बीजेपी को भी मजबूती देगी। आरा और बड़हरा दोनों सीटों पर बीजेपी की पकड़ मजबूत रही है, लेकिन उम्रदराज नेताओं की जगह पवन सिंह जैसे युवा और लोकप्रिय चेहरे को मैदान में उतारना पार्टी की रणनीति को और प्रभावी बना सकता है।
इस प्रकार, पवन सिंह की चुनावी दावेदारी को लेकर आरा और बड़हरा सीटों की चर्चा इसलिए है क्योंकि ये दोनों सीटें उनके पैतृक और व्यक्तिगत संबंधों से जुड़ी हैं, साथ ही जातीय और राजनीतिक समीकरण उन्हें यहां से मजबूत उम्मीदवार बनाते हैं। आने वाले दिनों में बीजेपी की ओर से अंतिम घोषणा का इंतजार रहेगा, लेकिन सियासी विश्लेषक मान रहे हैं कि पवन सिंह का चुनावी प्रवेश बिहार विधानसभा चुनाव में रोमांचक मोड़ ला सकता है।