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06-Oct-2025 03:34 PM
By First Bihar
Bihar Assembly Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ तेज़ हो गई हैं। चुनाव आयोग अब से थोड़ी देर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान करेगा। इसके साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। राजनीतिक दल छठ पर्व के तुरंत बाद पूरे बिहार में एक ही चरण में चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे अधिक से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे और लोकतंत्र का महापर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा।
बिहार से बड़ी संख्या में लोग अपने रोज़मर्रा के जीवन यापन के लिए अन्य प्रदेशों में रहते हैं, लेकिन छठ के अवसर पर अधिकतर लोग अपने घर लौटते हैं। इसलिए राजनीतिक दल चाहते हैं कि छठ के बाद एक ही चरण में वोटिंग कराई जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी मतदाता अपने घर लौटकर वोट डाल सकें और राज्य सरकार चुनने में भागीदारी कर सकें। हालांकि, चुनाव की तारीख और चरणों की संख्या का निर्णय पूरी तरह से चुनाव आयोग करेगा।
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव का उदाहरण देखें, तो वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव तीन चरणों में संपन्न हुआ था। पहले चरण में मतदान 28 अक्टूबर, दूसरे चरण में 3 नवंबर और तीसरे चरण में 7 नवंबर को हुआ था। इसके परिणाम 10 नवंबर को घोषित किए गए। उस समय कोविड महामारी की चुनौतियों के बीच यह चुनाव संपन्न हुआ।
2020 में हुए चुनाव में एनडीए ने सत्ता प्राप्त की थी। एनडीए को कुल 125 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। राजद 75 सीटों के साथ महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी रही। एनडीए के भीतर भाजपा को 74 सीटें, जदयू को 43 सीटें, विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को 4 सीटें और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) को 4 सीटें मिलीं। वहीं महागठबंधन में राजद को 75 सीटें, कांग्रेस को 19 सीटें, सीपीआई (एमएल) को 12 सीटें और अन्य जैसे AIMIM को 5 सीटें मिली थीं।
बिहार में 2020 का चुनाव एनडीए और महागठबंधन के बीच बेहद कड़ा मुकाबला रहा। दोनों गठबंधनों को लगभग समान वोट प्रतिशत मिला। एनडीए को 37.26% और महागठबंधन को 37.23% वोट प्रतिशत प्राप्त हुआ। कुल मतों में केवल 12,000 वोटों का अंतर रहा। इस छोटे अंतर के कारण महागठबंधन महज 15 सीटें हार गया। यह दिखाता है कि बिहार में राजनीतिक मुकाबला हमेशा ही बेहद संतुलित और प्रतिस्पर्धात्मक रहता है।
इस बार बिहार की राजनीति में एक नया खिलाड़ी भी उभर रहा है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी खुद को एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है। यह पार्टी मुख्य रूप से युवा मतदाताओं और समाज के उन वर्गों को लक्ष्य कर रही है, जो पारंपरिक राजनीतिक दलों से संतुष्ट नहीं हैं। ऐसे में आगामी चुनाव में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नए और पुराने राजनीतिक गठबंधनों की स्थिति क्या होगी और जनता अपने मतों के माध्यम से किसको सशक्त बनाती है।
राजनीतिक दलों की मांग है कि चुनाव एक ही चरण में आयोजित हो, ताकि अधिकतम संख्या में प्रवासी मतदाता अपने घर लौटकर मतदान कर सकें। यह चुनाव बिहार के लोकतंत्र के महापर्व के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यहां की जनता हमेशा बड़ी संख्या में वोटिंग करती रही है। छठ पर्व और चुनाव का यह समय मिलकर बिहार के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उत्साह और भागीदारी को बढ़ावा देता है।
अंततः, बिहार विधानसभा चुनाव सिर्फ राजनीतिक सत्ता का निर्धारण नहीं करता, बल्कि यह राज्य में लोकतंत्र की मजबूती और नागरिक भागीदारी की भी कसौटी है। 2020 के परिणामों और आगामी चुनाव की तैयारियों को देखते हुए यह साफ है कि बिहार में मतदान का उत्साह हमेशा उच्च स्तर पर रहता है। इस बार भी जनता की भागीदारी और नए राजनीतिक खिलाड़ियों की भूमिका राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित होगी।