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18-Jun-2025 08:36 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार की गंडक नदी में जलीय जैव विविधता को लेकर एक बड़ी कामयाबी सामने आई है। बीते 10 वर्षों में घड़ियालों की संख्या में 588 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2018 से 2025 के बीच इस नदी में 876 घड़ियाल छोड़े गए, जिनमें से सिर्फ 2025 में ही 174 घड़ियाल पुनर्स्थापित किए गए हैं। वर्तमान में बड़े घड़ियालों की संख्या 400 से अधिक और कुल संख्या 1000 के पार पहुंच चुकी है।
यह सफलता बिहार वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) द्वारा चलाए जा रहे संरक्षण अभियान का नतीजा है, जो पिछले 15 वर्षों से लगातार जारी है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) से होकर बहने वाली गंडक नदी को वन्यजीव विशेषज्ञों ने घड़ियालों के लिए बेहतर प्राकृतिक आवास (हैबिटेट) बताया है। वन संरक्षक सह क्षेत्र निदेशक डॉ. नेशामणी के अनुसार, हर वर्ष घड़ियालों की संख्या में 20 से 22 फीसदी तक की वृद्धि हो रही है, जो जैव संरक्षण के लिहाज से बेहद सकारात्मक संकेत है।
घड़ियालों की संख्या में वर्षों के अनुसार वृद्धि (महत्वपूर्ण आंकड़े) 2003 में पहला संकेत एक पूंछ कटा घड़ियाल देखा गया। वहीं 2010-11 सिर्फ 10 घड़ियाल देखे गए। 2014 के सर्वे में 54 घड़ियाल मिले। 2025 में घड़ियालों की संख्या 1000+ (बड़े-छोटे मिलाकर) हो गई है।
डब्ल्यूटीआई के चीफ इकोलॉजिस्ट डॉ. समीर सिन्हा बताते हैं कि 2003 में डॉल्फिन सर्वे के दौरान गंडक नदी में एक घायल घड़ियाल का बच्चा देखकर उन्होंने इसकी रक्षा को लेकर गंभीर रुचि दिखाई। इसके बाद वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इस क्षेत्र में संरक्षण का कार्य तेज किया। घड़ियालों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी, नदी तटों की निगरानी, घोंसलों की सुरक्षा, और प्राकृतिक भोजन शृंखला को बनाए रखने जैसे प्रयास किए जा रहे हैं।
संरक्षण के पीछे प्रमुख कारण यह है कि पुनर्स्थापना के लिए सुरक्षित स्थानों का चयन, गंडक नदी का प्रदूषण से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होना, नदी के किनारे अवैध रेत खनन पर नियंत्रण, अंडों और बच्चों के संरक्षण के लिए निगरानी अभियान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नियमित सर्वे और टैगिंग प्रक्रिया को शामिल किया है।
गंडक नदी में घड़ियालों की यह संख्या न केवल भारत, बल्कि दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घड़ियाल एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) प्रजाति है, जो केवल भारत, नेपाल और कुछ अन्य दक्षिण एशियाई देशों में पाई जाती है। IUCN रेड लिस्ट के अनुसार, यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है।