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Jaya Ekadashi 2025: पापों से मुक्ति का पवित्र व्रत है जया एकादशी, पूजा मुहूर्त और नियम जानें

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे पवित्र और शुभ माना गया है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 08 Feb 2025 07:05:23 AM IST

Jaya Ekadashi

Jaya Ekadashi - फ़ोटो Jaya Ekadashi

Jaya Ekadashi 2025:  हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इसे सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा से करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है।

हर साल 24 एकादशियां होती हैं, और प्रत्येक का अपना अलग महत्व है। इनमें से जया एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, जिसे करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।


जया एकादशी व्रत 2025 का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 7 फरवरी 2025 को रात 9:26 बजे शुरू होगी और 8 फरवरी 2025 को रात 8:15 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के महत्व को ध्यान में रखते हुए जया एकादशी व्रत 8 फरवरी को रखा जाएगा।


जया एकादशी व्रत का महत्व

जया एकादशी व्रत की महिमा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। इस व्रत को करने से:

जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।

धन, ऐश्वर्य, और कीर्ति प्राप्त होती है।

शत्रुओं का नाश होता है।

पितरों को संतोष मिलता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

स्कंद पुराण, पद्म पुराण और महाभारत में भी एकादशी व्रत के महत्व का उल्लेख है। इसे यज्ञ और वैदिक कर्म-कांड से भी अधिक फलदायी बताया गया है।


जया एकादशी पर शुभ योग

इस साल जया एकादशी के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं:

रवि योग: साधना और पूजा के लिए उत्तम।

भद्रावास: शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ।

शिववास योग: भगवान शिव और विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण।

मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्र: इन नक्षत्रों में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


जया एकादशी व्रत की पूजा विधि

सुबह स्नान और शुद्धिकरण:

सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें और पीले वस्त्र धारण करें।

सूर्य अर्घ्य और संकल्प:

सूर्य देव को जल अर्पित करें और व्रत का संकल्प लें।

भगवान विष्णु की पूजा:

भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने पंचोपचार पूजा करें।

पीले फूल, मिठाई, फल आदि अर्पित करें।

विष्णु चालीसा और विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।

आरती और भजन-कीर्तन:

पूजा के अंत में आरती करें और दिनभर भजन-कीर्तन करते रहें।


उपवास:

व्रत के दौरान अन्न का सेवन न करें। फलाहार या जल ग्रहण कर सकते हैं।


रात्रि जागरण:

रात में जागकर भगवान विष्णु की आराधना करें।


दान-पुण्य:

अगले दिन व्रत खोलने के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।


एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व

एकादशी को "हरी वासर" यानी भगवान विष्णु का दिन कहा गया है। इसे करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और जातक के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

स्कंद पुराण: हरिवासर यानी एकादशी और द्वादशी व्रत के बिना तीर्थ यात्रा, यज्ञ या अन्य कर्मकांड का पूर्ण फल नहीं मिलता।

पद्म पुराण: इच्छा हो या न हो, जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है, उसे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

महाभारत: भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को 24 एकादशियों का महत्व बताया है और इसे सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया है।



जया एकादशी व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है बल्कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह व्रत आत्मशुद्धि, ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समाज सेवा का प्रतीक है। इस दिन की गई पूजा और दान-पुण्य से व्यक्ति के जीवन की समस्त परेशानियां दूर होती हैं और उसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। अगर आप इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करते हैं, तो यह निश्चित ही आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा।