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Deoghar: बाबा बैद्यनाथ में पंचशूल की अनोखी परंपरा, जानिए महिमा का रहस्य

देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम की अनूठी परंपरा ने धार्मिक जगत में चर्चा का नया आयाम स्थापित कर दिया है। जहाँ अधिकांश ज्योतिर्लिंगों में त्रिशूल का प्रचलन है, वहीं देवघर के 22 मंदिरों के शिखरों पर पंचशूल विराजमान है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 10 Feb 2025 07:48:19 AM IST

Deoghar

Deoghar - फ़ोटो Deoghar

Deoghar: देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ का धाम अपने अद्वितीय पूजा परंपरा और मान्यताओं के लिए विख्यात है। जहाँ अधिकांश ज्योतिर्लिंगों में त्रिशूल विराजमान होता है, वहीं देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम के 22 मंदिरों के शिखरों पर पंचशूल का स्थापना दर्शनीय है। स्थानीय तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी के अनुसार, इस अनूठी परंपरा का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जो इस ज्योतिर्लिंग की महिमा को और बढ़ा देती है।


पंचशूल की विशेषता और पौराणिक कथा

श्रृंगारी बताते हैं कि देवघर में ज्योतिर्लिंग के शिखर पर त्रिशूल के स्थान पर पंचशूल का होना एक सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि रावण ने सुरक्षा के लिए लंका के मुख्य द्वार पर पंचशूल स्थापित किया था। इसी पौराणिक कथा के अनुसार, विभीषण ने भगवान राम को रावण द्वारा पंचशूल स्थापना की जानकारी दी, जिसके बाद राम ने अपनी सेना के साथ लंका में प्रवेश किया था। इसी प्रथा के अंतर्गत देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के समय उत्पन्न विष को भगवान शिव द्वारा पीने के बाद स्वरभानु से निकलकर राहु-केतु का रूप धारण करने का भी उल्लेख मिलता है।


शिव और शक्ति का अद्भुत संगम

देवघर के ज्योतिर्लिंग में न केवल भगवान शिव का, बल्कि मां शक्ति का भी विशेष महत्व है। बैद्यनाथ धाम में श्री विद्या के साथ शिव और शक्ति का समागम इस क्षेत्र को तंत्र साधना का केंद्र बनाता है। स्थानीय श्रद्धालुओं का मानना है कि पंचशूल, जो पांच तत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु – का प्रतीक है, मंदिर की सुरक्षा करते हुए भक्तों के पापों का नाश कर देता है। शिव पुराण में भी कहा गया है कि पंचशूल के दर्शन से अनजाने में किए गए पाप समाप्त हो जाते हैं और साधक को समस्त फलों की प्राप्ति होती है।


महाशिवरात्रि के पूर्व पंचशूल उतारने की परंपरा

देवघर में महाशिवरात्रि से एक सप्ताह पूर्व पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। सबसे पहले भगवान गणेश के मंदिर का पंचशूल उतारा जाता है, जिसके बाद धीरे-धीरे सभी मंदिरों के पंचशूल उतारे जाते हैं। महाशिवरात्रि से दो दिन पूर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर का पंचशूल उतारा जाता है। अंततः महाशिवरात्रि के दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना के बाद पंचशूल को पुनः मंदिर के शिखर पर विराजमान कर दिया जाता है। यह परंपरा न केवल भक्तों में धार्मिक श्रद्धा को बढ़ावा देती है, बल्कि उन्हें भगवान शिव और शक्ति की कृपा का अनुभव भी कराती है।


देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम की यह अनोखी परंपरा, जिसमें पंचशूल की महिमा से जुड़ी पौराणिक कथाएँ और धार्मिक रीति-रिवाज निहित हैं, भक्तों के मन में अद्वितीय श्रद्धा और विश्वास को जगाती है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा और परंपराएं न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन हैं, बल्कि भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करती हैं।